उत्तराखंडः ऊधमसिंह नगर में बंद होगी बेमौसमी धान की खेती

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Unseasonal paddy cultivation will be stop in Udham Singh Nagar negative results are behind
ऊधमसिंह नगर। उत्तराखंड के प्रमुख कृषि उत्पादक जिला ऊधमसिंह नगर में बेमौसम धान की खेती के नकारात्मक परिणाम सामने आने लगे हैं। तराई में गिरते भूजल स्तर और कीटों का जीवन चक्र बढ़ने से कीटनाशकों के अत्यधिक प्रयोग को देखते हुए कृषि विभाग ने बेमौसम धान पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव सरकार को भेज दिया है।

तराई में खरीफ सत्र की प्रमुख फसल धान की साल में दो बार खेती कर मुनाफा कमाने के फेर में पिछले सात-आठ सालों में तराई का भूजल स्तर करीब 70 फीट नीचे चला गया है। इसका कारण पानी का अत्यधिक दोहन और धान की दो फसलों के बीच अंतराल न होने से कीटों का जीवन चक्र टूट नहीं रहा है।

इस कारण कीटों की संख्या बढ़ने के धान की फसल में अधिक रोग लग रहे हैं। इससे धान की गुणवत्ता खराब होने के साथ ही कीटनाशकों का अत्यधिक प्रयोग होने से खेती की लागत भी बढ़ रही है। वर्तमान में जिले की कुल एक लाख पांच हजार हेक्टेयर कृषि भूमि में से करीब 40 हजार हेक्टेयर खेती बेमौसमी धान की हो रही है।

तराई का भूजल स्तर बचाना जरूरी
तराई में भूजल स्तर गिरने व कीटों की समस्या महंगी होती खेती को देखते हुए सरकार को प्रस्ताव भेजकर बेमौसम धान की खेती पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई है। इसका शासनादेश जारी होते ही जिले में बेमौसम धान प्रतिबंधित हो जाएगा।
– डॉ. पीके सिंह, आयुक्त कुमाऊं, कृषि विभाग

दो दशक पूर्व तराई में पानी के कई स्रोत थे, लेकिन बेमौसमी धान की खेती के बाद अब सबमर्सिबल पंप से 150 से 200 मीटर पर पानी निकल रहा है। यदि तराई में बेमौसमी की धान की खेती पर प्रतिबंध नहीं लगा तो आने वाले समय में तराई में खेती पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। आने वाली किसानों की नई पीढ़ियां खेती के पानी को तरस जाएंगी। गिरते भूजल स्तर की समस्या के कारण ही पंजाब, हरियाणा व यूपी में बेमौसमी धान की खेती प्रतिबंधित है।
– तजिंदर सिंह विर्क, प्रदेश अध्यक्ष, तराई किसान संगठन

तना छेदक, ब्लाइट व बीपीएच कीट हुए सक्रिय
कृषि विभाग के मुताबिक, धान की फसल में तना छेदक, ब्लाइट, बीपीएच, पत्ती लपेटक आदि कीट सक्रिय रहते हैं। धान का बीज इन कीटों का होस्ट होता है। फसल कटने के बाद कुछ दिनों तक यह कीट सक्रिय रहते हैं। धान की एक फसल कटने के कुछ दिनों बाद बेमौसमी धान की खेती होने से इन कीटों का पनपने का मौका मिलता है। कीटों की सक्रियता बढ़ने से धान की गुणवत्ता खराब होने व कीटनाशकों को नष्ट करने के लिए तराई में अत्यधिक कीटनाशकों का प्रयोग करना पड़ रहा है।

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