मुख्यमंत्री धामी ने अपने आवास पर पौधरोपण कर प्रदेश में की हरेला की शुरुआत

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खटीमा : मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने शुक्रवार को अपने आवास पर पौधरोपण कर हरेला पर्व की शुरुआत की। उन्होंने कहा कि हरेला पर्व हरियाली का प्रतीक है। इसको हरित क्रांति के रूप में मनाना होगा, तभी हम पर्यावरण को संरक्षित रख सकते हैं। इसमें जन जन की भागीदारी होनी चाहिए। उन्होंने कहा कावड़ यात्रा 2 वर्षों बाद हो रही है। इसके सफलतापूर्वक संपन्न करने के लिए पूरे बंदोबस्त किए गए हैं। इस मौके पर उन्होंने प्रदेश की जनता से अधिक से अधिक पौधारोपण करने की अपील की।

सीएम धामी ने शुक्रवार को अपने आवास समस्या लेकर पहुंचे फरियादियों से मुलाकात की। उन्होंने संबंधित अधिकारियों को अविलंब समस्याओं के निस्तारण के निर्देश दिए। इसके बाद उन्होंने अपने आवास पर हरेला पर्व के अवसर पर रुद्राक्ष समेत विभिन्न में छायादार व फलदार पौधों का रोपण किया।

उन्होंने कहा हरेला पर्व पर अधिक से अधिक पौधों का रोपण किया जाए। पौधरोपण का जीवन में विशेष महत्व है। पिछले कई वर्षों से हरेला पर्व पर पौधरोपण होता आया है इसमें वन विभाग विज्ञान विभाग विशेष भूमिका निभाता रहा है। कावड़ यात्रा के संबंध में उन्होंने कहा की यात्रा को लेकर सभी तैयारियां पूरी कर ली गई है।

शिव भक्तों को किसी भी प्रकार की परेशानी नहीं उठाने दी जाएगी। इसके बाद सीएम धामी राधा स्वामी सत्संग भवन परिसर में बने अस्थाई हेलीपैड पर पहुंचे। जहां से वह देहरादून के लिए रवाना हो गए। इस मौके पर जिलाधिकारी युगल किशोर पंथ, एसएसपी मंजूनाथ टी सी, प्रभागीय वन अधिकारी संदीप कुमार, पूर्व विधायक प्रेम सिंह राणा, कैलाश मनराल समेत बड़ी संख्या में अधिकारी व भाजपा कार्यकर्ता मौजूद थे।

क्या है हरेला पर्व

हमारे पूर्वज बहुत दूरदर्शी थे इसलिए उन्होंने विज्ञान को लोक पर्व व त्योहार से पिरोकर रखा। लोकपर्व हरेला से पौधरोपण को बढ़ावा मिलता है। इससे वायुमंडल में आक्सीजन, भूजल संग्रहण के साथ वातावरण में हरियाली रहती है। उत्तराखंड में जब सावन शुरू होता है, उसी समय हरेला पर्व मुख्य रूप से मनाया जाता है। यह लोकपर्व खुशहाली और समृद्धि का प्रतीक है।

जुलाई की शुरु के 9 दिन में मक्‍का, गेहूं, उड़द, सरसों और भट जैसे बीज बोए जाते हैं। कुछ दिनों में ही इसमें अंकुरित होकर पौधे उग जाते हैं, उन्हें ही हरेला कहते हैं। इन पौधों को देवताओं को अर्पित किया जाता है। इसके बाद घर के बुजुर्ग इसे काटते हैं और छोटे लोगों के कान और सिर पर रखकर आशीर्वाद देते हैं।

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