रानीखेत : वन्यजीव-मानव संघर्ष में पहाड़ के आंसू बह रहे हैं। वहीं, ‘लिविंग विद लेपर्ड’ प्लान धरातल पर नहीं उतारा जा सका है। जबकि महाराष्ट्र की तर्ज पर गढ़वाल मंडल के गुलदार प्रभावित कुछ जिलों व गांवों में आजमाए जा रहे इस प्लान के सुखद परिणाम मिले हैं। कुमाऊं के अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, बागेश्वर व नैनीताल में जनहानि रोकने को रैपिड रिस्पांस टीम का गठन तो दूर, इस प्लान पर अमल तक नहीं किया जा सका है।
महाराष्ट्र के हिंसक वन्यजीव गुलदार प्रभावित जुनर गांव में इस फार्मूले को अपनाया गया था। इसके बेहतर परिणाम सामने आने पर 2017 में उत्तराखंड में भी इसे आजमाने की तैयारी की गई। गढ़वाल मंडल के टिहरी, पौखाल व अगरोड़ा में तो 2016 से इस पर काम चल रहा है। चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन राजीव भरतरी के दिशा निर्देशन में पौड़ी आदि तमाम क्षेत्रों में रैपिड रिस्पांस टीम गठित कर लोगों को जागरूक किया जा रहा है। वहां भी टकराव को कम करने में मदद मिली है। मगर कुमाऊं के पर्वतीय जिलों में बढ़ते मानव वन्यजीव संघर्ष के बावजूद इसे अब तक शुरू नहीं किया जा सका है। हालांकि प्रभागीय वनाधिकारी महातिम सिंह यादव की अगुआई में लिव विद लेपर्ड फार्मूले पर फाइल तेजी से आगे बढ़ी भी है।
ये है फार्मूला की खासियत
वन विभाग की रैपिड रिस्पांस टीम हिंसक वन्यजीव प्रभावित गांवों पर नजर रखेगी। ग्रामीणों को जंगल या वनक्षेत्रों से सटे खेतों में कैसे, कितने बजे तक जाना है यह भी बताया जाएगा। साथ ही शौचालय, आंगन व गलीनुमा गांव के रास्तों पर सौर ऊर्जा या बिजली जलाने को जागरूक किया जाना है। दीप चंद्र पंत, प्रभारी डीएफओ अल्मोड़ा वन प्रभाग ने बताया कि लिव विद लेपर्ड प्लान पर प्रयास तेज किए गए हैं। जहां इस फार्मूले को अपनाया जा रहा है, वहां परिणाम अच्छे मिले हैं। जल्द अल्मोड़ा डिवीजन में भी इसे शुरू करने की उम्मीद है।
राज्य में दो दशक में मारे गए इंसान
वन्यजीव मृतक घायल
गुलदार 477 1481
बाघ 48 98
भालू 16 85
जान गंवाने वाले वन्यजीव
गुलदार : 1501
बाघ : 164
(टकराव में मारे गए मानव व वन्यजीवों के आंकड़े राज्य गठन से अब तक के हैं)
टाल फ्री नंबर का प्रचार भी नहीं
चरम पर पहुंच चुके मानव वन्यजीव संघर्ष को कम करने के लिए वन विभाग ने तीन वर्ष पूर्व टोल फ्री नंबर-1926 सार्वजनिक किया था। ताकि जंगलात के साथ हिंसक वन्यजीवों व टकराव से जुड़ी सूचनाएं दर्ज कराए जाने पर त्वरित कदम उठाया जा सके। इस नंबर का व्यापक प्रचार न होने से अधिकांश पर्वतीय जिलों के ग्रामीण इससे अनजान हैं।
साल 2019 ने भी खूब डराया
गुलदार प्रभावित पर्वतीय जिलों में साल 2018 में वर्ष 2012 जैसे हालात पैदा हुए थे। तब अल्मोड़ा, बागेश्वर, चम्पावत व पिथौरागढ़ में 12 लोग गुलदार का शिकार बने थे। 70 घायल भी हुए। 2019 में आंकड़ा बढ़ गया। 15 लोग मारे गए और 76 घायल हुए। जवाब में 40 गुलदारों को नरभक्षी होने की कीमत भी चुकानी पड़ी। राज्य गठन से अब तक के आंकड़ों पर गौर करें तो संघर्ष में 91 इंसान व 155 गुलदार ने अपनी जान गंवाई।