आज की राजनीति बेशक होटलों और आलीशान बंगलों में सिमट गई हो, लेकिन एक दौर ऐसा भी था, जब चौपाल, घर की बैठक या किसी के घेर में बैठकर चुनाव की रणनीति बनती थी। उस समय ज्यादातर लोग तो चाय-कॉफी को जानते नहीं थे।दूध, लस्सी या फिर ठंडाई की चुस्कियों के बीच किसी एक प्रत्याशी का चयन होता था। हर फैसला दिल्ली में बैठे पार्टियों के संसदीय बोर्ड नहीं करते थे। कई बार तो बस्ती के किसी बड़े आदमी की बैठक में ही पक्ष और विपक्ष के प्रत्याशियों की घोषणा एक छत के तले कर दी जाती थी।
ज्वालापुर में तय होता था राजनीति का बड़ा हिस्सा
कुछ दशक पहले हरिद्वार में बनवारीलाल भल्ला, सत्यप्रकाश भार्गव, राममूर्ति वीर, रामबाबू पचभैया, काका छोले वाले, जवाहर लाल जेटली, महंत घनश्याम गिरी, चंद्रमोहन आदि नेताओं के इर्दगिर्द सभी दलों की राजनीति घूमती थी। कनखल में तत्कालीन राज्यसभा सदस्य हीरा वल्लभ त्रिपाठी, हरिदत्त जोशी, जगदीश चौधरी, योगेंद्र पाल शास्त्री, रामकिशन गोयल, पारस कुमार जैन, मोहनलाल गुप्ता, अशोक त्रिपाठी, जयप्रकाश सरायवाले, भारतेंदु हांडा, सीताराम प्रेमी आदि धर्मनगरी का राजनीतिक भविष्य तय करते थे।
पंचपुरी की राजनीति का बड़ा हिस्सा व्यावसायिक उपनगरी ज्वालापुर में तय होता था। इसका मुख्य जिम्मा कभी सरदार रामरखा के सिर पर था। बाद में सरदार आनंद प्रकाश शर्मा पंचपुरी की राजनीति का केंद्र बिंदु बन गए। वासुदेव ठेकेदार, पंडित कालूराम ठेकेदार, ओमप्रकाश अरोड़ा, अंबरीष कुमार, रामकृष्ण मेहता, राजकुमार शर्मा, राजकुमार अरोड़ा, विश्वेश्वर मिश्रा, शिव कुमार सिखौला, बाबू तुफैल अहमद, राव इकबाल, मोहम्मद जर्रार के इर्दगिर्द राजनीति घूमती रही।
पंचपुरी के ये तमाम नेता कांग्रेस, जनसंघ, सोशलिस्ट पार्टी, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, कम्युनिस्ट पार्टी आदि के नीति निर्धारक थे। इनमें से किसी की बाहरी बैठक में बैठकर नगरपालिका, विधानसभा और लोकसभा चुनाव के लिए प्रत्याशी चुन लिए जाते थे। पंचपुरी की समृद्ध राजनीति इतनी शानदार थी कि सहारनपुर जनपद के शीर्ष नेता भी यहां होने वाली बैठकों में भाग लेते थे। चूंकि, हरिद्वार की राजनीति सहारनपुर के साथ-साथ परवादून विधानसभा और कभी देहरादून लोकसभा क्षेत्र से भी जुड़ी थी।