आग की आगोश में रहा मां झूमाधुरी का जंगल , लाखों की बन संपदा को नुकसान

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चंपावत। कड़ाके की ठंड में भी जंगल खाक हो रहे है। जिससे पर्यावरण संरक्षण और संर्वधन की बात करना बेमानी हो गई है। बीते शुक्रवार को ग्राम सभा पाटन पाटनी व ग्राम सभा पम्दा के जंगलों में भयंकर आग लग गई है। आग ने पूरे वन क्षेत्र को अपनी आगोश में ले लिया है। जिससे छोटे छोटे बॉज, बुराश, फल्याठ, उतीश सहित लाखों की वन संपदा जल कर राख हो गई है। यहां तक कि जंगलों में गिरे पड़े पेड़ों में आग धधक रही है। पाटन के ग्राम सभा के जंगलों में शुक्रवार को दिन में आग लगी देखते ही देखते आग मां झूमाधुरी मंदिर पहुंच गई।

सामाजिक संगठनों से जुड़े लोग मां झूमाधूरी मंदिर पहुंच गए। मंदिर के समीप आग पहुंची दो घंटो की मशक्कत के बाद आग पर काबू पाया। लेकिन जंगल की आग बढ़ते बढ़ते 36 वी वाहिनी आईटीबीपी आवासीय परिसर की ओर बढने लगी है। आग लगने से क्षेत्र में धुंध सी छा गई है। झूमाधुरी मंदिर की चोटी में आग की लपटें साफ देखी गई। पूरी रात जंगल से धुआं उठता रहा।

सुबह के समय आग गलचैड़ा जंगल की ओर बढने लगी है। जिले में पहली बार शीतकाल में जंगल जलने की घटनाएं हो रही हैं। बाराकोट, खोला सुनार और तडगा के क्षेत्र के जंगल भी आग की चपेट में आने से जलकर राख हो गए हैं। माना जा रहा है कि लंबे समय से बारिश नहीं होने के कारण वातावरण में नमी काफी हो गई है। दिन में तापमान अधिक होने के चलते ही जंगलों में आग की घटनाएं हो रही हैं।

जगलों की आग से पेयजल स्रोतों में कम हुआ पानी

जंगलों की आग से प्राकृतिक जल स्रोत सूखने की आशंका है। जिन जंगलों में आग लग रही हैं उनमें तमाम प्राकृतिक जल स्रोत हैं। इन जल स्रोतों से जंगली जानवर तो अपनी प्यास बूझाते ही हैं। मानव बस्तियों तक पानी पहुंचने पर ग्रामीण भी विभिन्न कार्यो के लिए इनका उपयोग करते हैं। शीतकाल में अभी तक बारिश नहीं हुई। ऐसे में इन स्रोतों में पानी पहले ही काफी कम है। अब जंगलों की आग से इनके पूरी तरह सूखने की आशंका है। पर्यावरण प्रेमियों ने वन महकमे से आग की इन घटनाओं को गंभीरता से लेने की मांग की है। इधर रेंजर दीप जोशी का कहना है कि जंगल की आग बुझाने में वन कर्मी जुटे हुए है चीड़ का जंगल होने से लगातार आग बढ़ती रही है। जिससे दिक्कतों का समाना करना पड़ रहा है।

 

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