अब सुकूनदायक आशियाना भी बनाएगी भांग, पौड़ी में स्वदेशी तकनीकी से बनाई जा रही पहली बिल्डिंग

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नैनीताल। पर्यावरण संरक्षण के साथ कारोबार का नया विकल्प देने वाली नम्रता उन युवाओं के लिए प्रेरणा बन सकती हैं जो कुछ नया करके नाम रोशन करना चाहते हैं। वह चार साल पहले दिल्ली छोड़कर उत्तराखंड आईं थी। पौड़ी के यमकेश्वर कंडवाल फलदाकोट मल्ला में अपने पैतृक गांव में चार अन्य साथियों के साथ गोहेम्प एग्रोवेंचर्स स्टार्टअप शुरू किया, जिसमें भांग से बनाई गई टाइल्स की दीवारें तैयार की जा रही हैं। डेमो के तौर पर बनाई जा रही बिल्डिंग का अक्तूबर में उद्घाटन करने की तैयारी है। नम्रता की मानें तो इस सामग्री से निर्मित यह देश की पहली बिल्डिंग होगी। साथ ही स्वदेशी तकनीकी से भारत में निर्मित देश की पहली हेम्प डीकॉर्टीकेटर मशीन भी प्रदेश में गोहेम्प एग्रोवेंचर्स स्टार्टअप द्वारा लाई गई है।

आर्किटेक्ट नम्रता कंडवाल व उसके साथ उनकी टीम में शामिल गौरव दीक्षित, हार्दिक जैन, दीपक कंडवाल और प्रियांक जायसवाल द्वारा सह-स्थापित, कंपनी आर्किटेक्ट्स, क्लाइंट्स, इनोवेटिव किसानों और उद्यमियों के साथ सहयोग बढ़ाने के साथ ही विस्तार कर रही है। भांग आधारित सामग्री के लिए दिल्ली में रहते हुए नम्रता व उनके साथियों ने 2017 में इस पर शोध शुरू किया था। जानकारी जुटाने के बाद नम्रता ने अपने पैतृक गांव में काम करने की ठानी। यहां स्टार्टअप शुरू किया, जिसके तहत भांग से तैयार टाइल्स से दीवारें तैयार होती हैं। इसके लिए नम्रता व उनके साथियों ने हेंप डीकॉर्टीकेटर मशीन लगाई। इस मशीन की सहायता से औद्योगिक हेंप (भांग) के रेशे को बिना पानी के ही लकड़ी से अलग किया जा सकता है। 

वर्तमान में हेंप, कंडाली आदि के रेशे को अलग करने के लिए इसके गट्ठर गदेरे तक ले जाने पड़ते हैं। जहां करीब दो हफ्ते इसे गलाना पड़ता है। इसके बाद पत्थर पर पीट-पीटकर इसका रेशा निकाला जाता है। इस पारंपरिक तरीके में श्रम की अधिकता, पानी एवं समय की अत्यधिक खपत की वजह से ग्रामीणों ने इसका उपयोग बंद या कम कर दिया है, जिससे इस प्राकृतिक संसाधन का समुचित सदुपयोग नहीं हो पा रहा है। मशीन की सहायता से हेंप के रेशे निकालकर, कपड़ा, कागज, इथेनॉल, बायोप्लास्टिक, बिल्डिंग मैटेरियल बनाया जा सकता है, जिससे प्रदेश में नई हेंप फाइबर इंडस्ट्री की स्थापना हो सकेगी। 

शोध में पता चला एलोरा की गुफाओं में भी यही मैटेरियल
नम्रता कंडवाल ने बताया कि वह नेचुरल बिल्डिंग मैटेरियल पर काम करना चाहती थीं। इसके लिए उन्होंने बिल्डिंग मैटेरियल में भांग की लकड़ी का इस्तेमाल करने की सोची। इसके अलावा उसके फाइबर पर भी काम कर रहे हैं। जब वह शोध कर रही थीं, तब पता चला कि जो बिल्डिंग मैटेरियल हमनें विकसित किया है, वह एलोरा की गुफाओं में पंद्रह सौ साल पहले भी इस्तेमाल किया गया है। विदेशों में भी इस पर काम हो रहा है। उत्तराखंड में इसे लेकर पॉलिसी भी है। इसलिए हमने यहां आने के लिए सोचा। 

जलवायु के अनुसार बनेंगे मकान
नम्रता के अनुसार पुराने मकान क्लाइमेट के अनुसार होते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब मकान गर्मियों में बहुत गरम और सर्दियों में बहुत ठंडे होते हैं, लेकिन हमारे द्वारा तैयार सामग्री से बनाए जाने वाले मकानों में यह दिक्कत नहीं होगी। इस सामग्री के उपयोग से मकान गर्मियों में ठंडक देंगे और सर्दियों में ठंडे नहीं रहेंगे। भूकंप के लिहाज से भी यह सामग्री सबसे बेहतर विकल्प है। 

प्रधानमंत्री ने भी सराहा 
ग्लोबल हाउसिंग टेक्नोलॉजी चैलेंज में नम्रता और उनके साथियों के प्रोजेक्ट को प्रधानमंत्री ने भी सराहा। बिल्डिंग मैटेरियल टेक्नोलॉजी पर काम कर 80 प्रतिभागियों ने इसमें हिस्सा लिया था। जिसमें नम्रता और उनकी टीम शीर्ष पांच में शामिल रहे। जनवरी में ही प्रधानमंत्री ने उन्हें सम्मानित किया। इसके बाद अब वह मिनिस्ट्री ऑफ हाउसिंग टेक्नोलॉजी के साथ भी काम कर रहे हैं। 

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