राज्य स्थापना के समय उत्तराखंड को पावर हाउस बनाने का जो सपना संजोया गया था, वह आज भी अधूरा ही है। प्रदेश में मौजूद ग्लेशियर और बर्फानी नदियों से करीब 20 हजार मेगावाट जल विद्युत उत्पादन की क्षमता है, लेकिन इन 20 साल में हम अभी तक पांच हजार मेगावाट उत्पादन तक ही पहुंच पाए हैं। आपदाओं के सालाना जख्म स्थापित परियोजनाओं को भले ही हिलाते रहते हों, लेकिन नई परियोजनाओं तक तमाम तरह की चुनौतियां प्रदेश को पावर हाउस बनने के सपने से दूर रखे हुए हैं।
उत्तराखंड में वर्तमान में 25 जल-विद्युत परियोजना (6 मध्यम एवं 19 लघु) 2378 मेगावाट क्षमता के साथ निर्माणरत चरण में हैं। 21,213 मेगावाट क्षमता वाली 197 जल-विद्युत परियोजनाएं उत्तराखंड के विभिन्न नदी घाटियों में प्रस्तावित हैं। इतनी संभावनाओं के बीच हालात यह हैं कि प्रदेश को अभी भी बाहरी बाजार से महंगे दामों पर बिजली खरीदनी पड़ रही है। हालात यह हैं कि टीएचडीसी जैसी बड़ी परियोजनाओं से मिलने वाला बिजली का हिस्सा भी अभी तक पूरा नहीं लिया जा रहा है।
यह है पावर हाउस बनने का फार्मूला
– प्रदेश की नदियों में करीब 20 हजार मेगावाट बिजली उत्पादन की क्षमता है। नदियों पर अगर छोटी या मध्यम परियोजनाएं भी लगाई जाएं तो निश्चित तौर पर बिजली उत्पादन बढ़ेगा।
– पर्वतीय राज्य होने की चलते यहां की नदियों की ढलान पर छोटी परियोजनाएं भी बिना झील के संचालित हो सकती हैं, जिसकी संभावनाओं पर काम करने की जरूरत है।
– तमाम बड़ी परियोजनाएं आज किसी न किसी विवाद के चलते अटकी पड़ी हुई हैं। सरकारें अगर सही पैरवी करें तो इनके निर्माण की राह खुलेगी, जिससे उत्तराखंड को बड़ी मात्रा में बिजली मिलेगी।
वर्तमान में जितनी जल विद्युत परियोजनाएं निर्माणाधीन या प्रस्तावित हैं, अगर वह समय से पूरी हों तो बदले में इतनी बिजली मिलेगी कि खुद उत्तराखंड बाजार में बिजली बेचने की स्थिति में आ जाएगा।
यह हैं चुनौतियां
– हर साल आने वाले आपदाओं से जल विद्युत परियोजनाओं को होने वाले नुकसान से बचाने की चुनौती।
– प्रस्तावित और निर्माणाधीन जल विद्युत परियोजनाओं पर काम करने की चुनौती।
– छोटी परियोजनाओं की स्वीकृति की लंबी प्रक्रिया को सरल बनाने की जरूरत।
– पर्यावरणीय नुकसान के बचाव के लिए विस्तृत अध्ययन के बाद परियोजनाएं तैयार करने की जरूरत।