पंचायत चुनाव में सरकार के सामने हैं चुनौतिया

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देहरादून। संवाददाता। नगर निकाय चुनावों में अपनी जीत से उत्साहित भाजपा की नजरें पंचायत चुनावों पर है, लेकिन इस बार हालात बिल्कुल अलग हैं। अपनी जीत को दोहराने की राह में पार्टी के समाने कई चुनौतियां हैं।

पहली चुनौती
ये चुनाव बिना सिंबल के होना है और यहां पार्टी से ज्यादा प्रत्याशी महत्तवपूर्ण होगा। अगर पार्टी सही प्रत्याशी पर दांव नहीं लगा पाई तो नतीजे उसकी उम्मीदों से उलट हो सकते हैं।

दूसरी चुनौती
पंचायत चुनावों में मोदी से ज्यादा राज्य सरकार के अभी तक के कार्यकाल का लिटमस टेस्ट होगा. इस बार पार्टी प्रधानमंत्री के चेहरे का इस्तेमाल करने से परहेज कर सकती है। पार्टी से समर्थित प्रत्याशी भी अगर प्रधानमंत्री के नाम का प्रयोग करते हैं तो ये प्रयोग बैक फायर कर सकता है।

तीसरी चुनौती
पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट पर दौहरी जिम्मेदारी है. वह नैनीताल से सांसद भी हैं. वहीं पंचायत चुनावों को लेकर उन्हें संगठन स्तर पर रणनीति बनाने के लिए समय निकालना होगा।

चौथी चुनौती
इस समय पार्टी में खाली पड़े पद भी एक बड़ा सरर्दद है। संगठन मंत्री का पद लंबे समय से खाली पड़ा है, तो पूरी प्रदेश कार्यकारणी अभी एक्सटेंशन पर चल रही है। इसकी वजह है कि प्रदेश अध्यक्ष भी अपना कार्यकाल पूरा कर चुके हैं।

पांचवींं चुनौती
पंचायती राज संशोधन एक्ट के संशोधन पर अपनों की नारजगी झेल रही पार्टी। हाल ही में पंचायती राज संशोघन एक्ट लाया गया जिसमें दो से ज्यादा बच्चों वाले प्रत्याशियों को चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित किया गया है। पार्टी के अंदर ही इसका विरोध भी है।

जिला पंचायत सदस्य अमेंद्र बिष्ट बताते है कि भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपनों की नाराजगी है। उन्होंने कहा कि जिस इलाके से वो प्रतिनिधि हैं वहां पर भाजपा के नेता खुलेआम अपनी नाराजगी दिखा रहे हैं। जबकि पार्टी की कई बैठकों में भी ये मसला उठा है।

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