देहरादून। संवाददाता। सूबे की राजधानी दून में इन दिनों डेंगू ने कहर बरपा रखा है। मरीजोें की बढ़ती संख्या को राजधानी के अस्पताल संभाल नहीं पा रहे है तथा डेंगू के मरीजों की जान पर बन रही है। दून के एक निजी अस्पताल में आज टिहरी से इलाज के लिए आये मरीज की मौत के बाद मृतकों की संख्या पांच हो गयी है वहीं डेगू से पीड़ित मरीजों का आंकड़ा 635 के पार हो गया है। हालात इतने खराब है कि दून अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक सहित चार डाक्टर भी डेंगू की चपेट में आ गये है।
राजधानी दून के अस्पताल कोरोनेशन और गांधी अस्पताल में मरीजों का दबाव इस कदर बढ़ चुका है कि डेंगू के मरीजों को भर्ती करने की गुंजाइश नहीं बची है। ऐसा ही हाल तमाम निजी अस्पतालों का भी है, खास बात यह है कि इन मरीजों का इलाज तो दूर की बात रहा उनके टेस्ट तक ठीक से नहीं हो पा रहे है। भले ही स्वास्थ्य विभाग द्वारा अपनी तैयारियों को लेकर लाख दावे किये जा रहे हो कि डेंगू से निपटने की उनकी पूरी तैयारी है लेकिन धरातल पर स्थिति इससे बिलकुल अलग है।
इस बीच जहंा दून अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक के.के.टम्टा को भी डेंगू हो गया है और उन्हे वीआईपी वार्ड में भर्ती होना पड़ा है वहीं हल्द्वानी के तीन डाक्टरों में भी डेगू होने की पुष्टि हो चुकी है। एक तरफ डेंगू के कहर के आगे स्वास्थ्य महकमा और उसकी कोशिशें व दावे धराशाही होते दिख रहे है वहीं डेंगू के मरीजों के मौत का सिलसिला भी शुरू हो गया है आज दून के एक निजी अस्पताल में टिहरी से दो दिन पहले आये डेंगू पीड़ित एक युवक की मौत हो जाने की खबर है वहीं प्रभारी स्वास्थ्य सचिव पंकज पाण्डेय ने एक बेतुका बयान देते हुए कहा है कि वह राज्य में किसी व्यक्ति की डेंगू से मौत की पुष्टि नहीं कर सकते है। क्योंकि उनके पास कोई ऐसा प्रमाणिक तथ्य नहीं है जिससे यह सिद्ध होता हो कि मरीज की मौत का कारण डेंगू था। सीधे तौर पर अगर कहा जाये तो स्वास्थ्य विभाग डेंगू से होने वाली मौतों को स्वीकार करने तक को तैयार नहीं है। डेंगू के मरीजों और मौतों की संख्या के बारे मे कोई भी स्वास्थ्य विभाग का अधिकारी सही संख्या तक बताने को तैयार नहीं है।