देहरादून। आरक्षण का गणित ही है कि प्रदेश में पंचायतों में 50 प्रतिशत से अधिक सीटों का प्रतिनिधित्व महिलाओं का होगा। इतना होने पर भी चुनी गई महिलाओं के सामने अपने बलबूते ही पंचायतों का काम निपटाना चुनौती होता है।
हाल ये है कि पंचायतों के प्रतिनिधियों को काम का प्रशिक्षण देने में लापरवाही बरती जाती है। ऐसे में महिलाओं को कामकाज निपटाने में खासी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। हालात ये हैं कि पिछली पंचायतों के प्रतिनिधियों को कार्यकाल खत्म होने से ठीक पांच माह पहले प्रशिक्षण दिया गया।
प्रदेश के पंचायत चुनाव में महिलाओं के लिए पचास प्रतिशत के आरक्षण की व्यवस्था है। ऐसे में महिलाओं की संख्या पचास प्रतिशत से अधिक ही होती आई है। पिछले पंचायत चुनाव में भी चुन कर आईं महिला प्रतिनिधियों की संख्या करीब 52 प्रतिशत के आसपास थी। इनमें से कई महिलाएं ऐसी थीं जो पहली बार पंचायत में पहुंची थी। इसके बावजूद इन महिलाओं के प्रशिक्षण की अलग से कोई व्यवस्था नहीं हुई।
खुद महिला प्रतिनिधियों का कहना है कि सिर्फ महिला होने के नाते ही उन्हें कई बार विपरीत हालातों का सामना करना पड़ा। एक पूर्व ब्लॉक प्रमुख के मुताबिक क्षेत्र पंचायतों की बैठक में कई महिला प्रतिनिधि सिर्फ इसलिए नहीं आती थी, कि उनका घर दूर है और घर के काम से फुर्सत नहीं मिल पाई। कई महिला प्रतिनिधियों को अपने दायित्व आदि की जानकारी ही नहीं होती थी। इस बार भी पंचायतों में पचास प्रतिशत से अधिक महिलाओं का पहुंचना तय है।
कम से कम सरकार को पुरुष कर्मियों को यह जरूर बताना चाहिए कि महिलाओं के साथ सभ्य तरीके से पेश आए। मैं ब्लॉक प्रमुख रही हूं और मैने पाया है कि महिलाओं को काम करने में सबसे ज्यादा परेशानी होती है। मेरे सामने एक मामला आया। जिसमें एक महिला प्रधान के पति ने प्रधान के हस्ताक्षर कर कुछ पैसे ले लिए। बाद में प्रधान को पूछा गया तो उसे जानकारी ही नहीं थी।
– रेखा भंडारी, पूर्व ब्लॉक प्रमुख, बेरीनाग
जो सक्षम हैं उनके सामने समस्या नहीं है, लेकिन जो सक्षम नहीं है, उनके सामने कई तरह की समस्याएं हैं। हालात ये है कि कई महिला जनप्रतिनिधि अपनी बात को सामने रख ही नहीं पाती हैं। महिलाओं में नेतृत्व क्षमता विकास से लेकर पंचायतों के काम को लेकर प्रशिक्षण दिया जाना जरूरी है। हाल ये है कि मेरे पूरे पांच साल के कार्यकाल में केवल एक बार प्रशिक्षण हुआ और उसमें भी कई प्रतिभागी शामिल ही नहीं हो पाए। प्रशिक्षण एक सतत प्रक्रिया होनी चाहिए।
– सुमति, पूर्व ब्लॉक प्रमुख गैरसैंण
2003-04 में यूएनडीपी के तहत एसबीएमए ने महिला प्रतिनिधियों के क्षमता विकास के काम किया था। उसके बाद से एसबीएमए लगातार इस मामले को लेकर काम कर रहा है, लेकिन यह सामने आया है कि हालात बहुत खराब हैं। हरिद्वार के कई हिस्सों में अगर एक भी पुरुष चला आया तो बैठक ही समाप्त हो जाती है। अब इतना तो है कि ब्लॉक और अन्य बैठकों में महिला प्रतिनिधि सीधे शामिल नहीं होते। यह साफ है कि महिला प्रतिनिधियों को दायित्व देने के साथ ही यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि वे स्वतंत्र रूप से कार्य कर पाएं।
– ज्ञान सिंह रावत, सचिव, श्रीभुवनेश्वरी महिला आश्रम
यह है इस बार स्थिति
पद महिला प्रतिनिधि कुल संख्या
सदस्य ग्राम पंचायत 27787 55574
ग्राम प्रधान 3743 7426
सदस्य क्षेत्र पंचायत 1492 2984
सदस्य जिला पंचायत 178