घोड़ाखाल मंदिर, जहां मनोकामनाएं पूरी होने पर घंटियां चढ़ाते हैं श्रद्धालु

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नैनीताल। कुमांऊ की धरती पर न्याय के देवता गोल्ज्यू में जनजन की आस्था है। गोल्ज्यू के
के मंदिरों में अर्जी लगाई जाती है और मनोकामना पूरी होने पर श्रद्धालु जिस मंदिर जो विधान
होता है , उसे पूरा करते हैं। नैनीताल जिले के घोड़ाखाल में गोल्ज्यू देवता का ऐसा ही एक
प्रसिद्व मंदिर है । भवाली से महज पांच किमी की दूरी पर स्थित सैनिक स्कूल के पीछे
चोटी पर बने इस मंदिर में हजारों घंटियां हैं। यहां नैसर्गिक सौंदर्य हर किसी को मुग्ध कर
देता है।

घोड़ाखाल मंदिर की मान्यता
घोड़ाखाल मंदिर में श्रद्धालु मंदिर में अपनी अपनी मन्नतें कागज और पत्रों में लिखकर एक
स्थान पर टांगते हैं और माना जाता है गोल्ज्यू देवता उन मन्नतों से ही भक्तों की पुकार
सुनते हैं। जब मन्नत पूरी होती है तो, लोग उपहार के रूप में ’’घंटियां ’’ चढ़ाते हैं। यहां
ऐसी भी मान्यता है। अगर कोई नवविवाहित जोड़ा इस मंदिर में दर्शन के लिए आता है तो
उनका रिशता सात जनमों तक रहता है। उत्तराखंड के अल्मोड़ा और नैनीताल जिले के
घोड़ाखाल मंदिर स्थित गोलू देवता के मंदिर में एक पत्र भेजकर ही मुराद पूरी होती है।
यहां शादी विवाह जैसे मांगलिक कार्यक्रम भी होते हैं ।

गोलू देवता के दरबार से कोई निराश नहीं लौटता
गोलू देवता को स्थानीय संस्कृति में सबसे बड़े और त्वरित न्याय के देवता के तौर पर पूजा जाता है। इन्हें राजवंशी देवता के तौर पर पुकारा जाता है। गोलू देवता को उत्तराखंड में कई नामों से पुकारा जाता है । इनमें से एक नाम गौर भैरव भी है। गोलू देवता को भगवान शिव का ही एक अवतार माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार गोलू देवता के मंदिर में जिसका भी विवाह होता है उसका वैवाहिक जीवन हमेशा खुशियों से भरा रहता है। मान्यता है कि गोल्ज्यू देवता के दरबार से कभी भी कोई दुखियारा निराश नहीं लौटता।

यह है गोलू देवता की कथा
कुमाऊं क्षेत्र के चंपावत के कत्यूरी राजा झलराई की सात रानियां थी। किसी भी रानी से कोई संतान नहीं थी जिसके बाद राजा ने पंडित और ज्योतिषियों से परापर्ष लिया। उन्होंने राजा की जन्म कुंडली देखकर बताया कि वे आठवां विवाह करें तो उन्हे पुत्र की प्राप्ति होगी।

सपने में मिली कलिंका
जिसके बाद एक दिन राजा झलराई ने आधी रात को सपने में नीलकंठ पर्वत पर बैठे कलिंका नामक सुंदर कन्या को देखा और दूसरे दिन यह बात सभी दरबारियों को बताते अपनी सेना के साथ नीलकंठ पर्वत की ओर चल दिए। काफी वर्षों बाद उन्हें तपस्या में लीन कलिंका मिली।

इस तरह मिली शादी की अनुमति
राजा झलराई ने अपना परिचय कलिंका को बताया कि सात रानियां होने के बावजूद मेरी कोई संतान नहीं है और कलिंका से अपनी आठवी रानी बनने का निवेदन किया।
कलिंका ने राजा को सलह दी कि वे साधु के पास जाकर शादी की अनुमति मांगे। जिसके बाद साधु ने राजा की पीड़ा सुनकर विवाह की अनुमति दे दी।

जलन में रानियों ने बच्चे की जगह रख दिया सिलबट्टा
रानी कलिंका से राजा को संतान हुई तो दूसरी रानियों ने जलन के कारण बच्चे की जगह पर खून से सना सिलबट्टा (एक प्रकार का पत्थर) रख दिया और बच्चे को खतरनाक गायों के गोशाला में फेंक दिया। बालक गोलू गायों का दूध पीकर बढ़ने लगा और रानी से कहा कि तेरे गर्भ से यह सिलबट्टे पैदा हुए हैं जिस कारण रानी काफी दूखी हुई।

संदूक में रखकर नदी में छोड़ा
रानियों ने गौशाला जाकर देखा कि नवजात बालक सुरक्षित है । उन्होंने उसे बिच्छु घास की झाड़ियों में फेंक दिया । जब सारी चाल नाकामयाब रहीं तो आखिर में उन्होंने एक काठ के संदूक में बच्चे को रखा और काली नदी में फेंक दिया। संदूक सात दिन तक बहते-बहते आठवें दिन गोरीघाट में भाना मछुवारे के जाल में फंस गया।

मछुवारे से बच्चे ने बताई सपने की बात
भाना मछुवारे ने संदूक खोलकर देखा उसमें हंसता खेलता बच्चा निकला। मछुवारे की कोई संतान नहीं थी, ऐसे में वह बच्चे को घर ले गया उसे पालने लगा। बच्चे का नाम गोलू रखा गया। गोलू ने सपने में एक बार अपनी मां कलिंका और पिता झलराई को देखा और भाना को सारी बात बता दी। यह भी कहा कि वे ही उसके उसली मां-बाप हैं। गोलू ने अपने मां-बाप से घोड़ मांगा।

काठ का घेड़ा कैसे पानी पी सकता है
भाना ने एक लकड़ी (काठी) का घोड़ा बनाकर दे दिया। वह काठ के घोड़े पर घूमने लगा । एक बार वह अपने घोड़े को पानी पिलाने उस जगह ले गया जहां वे सातों रानियां नहाने के लिए आती थी। रानियों ने उसके घोड़े को पानी न पीने दिया । उन्होंने कहा कि काठ का घोड़ा पानी कैसे पी सकता है।

इसलिए कहा गया न्याय का देवता
गोलू ने उत्तर दिया कि जब एक औरत सिलबट्टे को जन्म दे सकती है तो काठ का घोड़ा कैसे पानी नहीं पी सकता है। रानियां यह बात सुनकर भयभीत हो गई। यह बात राजा के कानों तक पहुंची तो उन्होंने गोलू को बुलाया और अपनी बात सिद्व करने को कहा। गोलू ने अपनी माता कलिंका के साथ हुए अत्याचारों की सारी कहानी सुनाई। राजा ने उसी समय गोलू को अपना पुत्र स्वीकार किया और सातों रनीयों को प्रांण दंड दे दिया। हालांकि न्याय के देवता गोलू ने उन्हें क्षमा दान दने की अपील की। इसलिए उन्हें न्याय का देवता कहा जाता है और उनका वाहन घोड़ा है।

कैसे पहुंचे घोड़खाल
घोड़खाल में गोल्ज्यू देवता का भव्य मंदिर है मंदिर के अंदर सफेद घोड़े में सिर पर सफेद पगड़ी बांधे गोलू देवता की प्रमिता है, जिनके हाथों में धनुष बाण हैं। यहां पहुंचने के लिए आपको दिल्ली से सीधे काठगोदाम तक के लिए ट्रेन, पंतनगर के लिए फ्लाइट मिली है। जहां से आपको आसानी से घोड़ाखाल के लिए टैक्सी मिल जाएगी।

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