बीस वर्ष से सीमांत में आपदा का ग्राफ तेजी से बढ़ा है। सड़क निर्माण का मलबा खाई और नदियों की तरफ धकेलने का खामियाजा आपदा के रू प में देखने को मिल रहा है। चट्टानों को तोडऩे के लिए अत्यधिक बारू दी विस्फोट भी पहाडिय़ों को कमजोर कर रहा है। सड़क जहां पहाड़ की लाइफ लाइन है वहीं इसके निर्माण से निकले मलबे के निस्तारण के लिए बनी नीति का सख्ती से पालन न होना बड़ी समस्या को जन्म दे रहा है।
शासन के निर्देशों के तहत सड़क बनने से पूर्व मलबा डालने के लिए डंपिंग यार्ड चयनित किए जाते हैं। नियमों के तहत सारा मलबा डंपिंग स्थलों पर ही डालने के निर्देश हैं, परंतु धरातल में यह सब नहीं होता है। निर्माण एजेंसियां अपनी लागत बचाने के चलते मलबा खाई या फिर नदी की ओर फेंक देती हैं। सीमांत पिथौरागढ़, चम्पावत और बागेश्वर जिले में पहाड़ी के नीचे ही तमाम गांव बसे हैं। यही मलबा मानसून काल में बारिश के साथ खिसकता है और आपदा को जन्म देता है।
2019 में मानसून काल में तहसील मुनस्यारी के विभिन्न स्थानों पर आई आपदा में यह वजह स्पष्ट दिखाई दी है। यहां निर्माणाधीन सड़कों का मलबा आपदा का कारण बना था। वहीं ऑलवेदर सड़क निर्माण के दौरान इसी तरह मलबा डाले जाने पिथौरागढ़ के लिए बनी घाट पंपिंग पेयजल योजना की पाइप लाइन आपदा की भेंट चढ़ गई। लगभग डेढ़ साल बाद नई लाइन बनने के बाद पानी मिलने लगा है। यही नहीं सड़कों का निर्माण में भारी मशीनों का प्रयोग बढ़ा है। संवेदनशील चट्टान को मैनुअली काटने के बजाय बारू दी विस्फोट से तोड़ा जा रहा है। विस्फोट के चलते चट्टानों में दरार मानसून काल में आपदा का कारण बन रही है। सप्ताह भर पूर्व बलुवाकोट के जोशी गांव की आपदा की वजह यही रहा।
पर्यावरण एवं भू विज्ञान विशेषज्ञ धीरेंद्र जोशी ने बताया कि पहाड़ की संवेदनशीलता को देखते सड़क निर्माण से पूर्व संवेदनशील स्थलों की भूगर्भीय जांच करानी आवश्यक होनी चाहिए। सड़क के मलबे को खाई और नदियों में गिराए जाने पर बेहद सख्ती की जरूरत है। मलबे के निस्तारण को लेकर बनी नीति का पालन न होने पर खतरा और बढ़ेगा।
डीएम डॉ आशीष चौहान ने बताया कि सर्वप्रथम इस वर्ष आपदा की चपेट में आए स्थलों की भूगर्भीय जांच आवश्यक है। धारचूला, जोशी गांव व मुनस्यारी के गांवों की भू वैज्ञानिक जांच कराई जा रही है। भूगर्भीय जांच के बाद ही स्थिति स्पष्ट होगी।