उत्तराखंडः सोरघाटी का प्रमुख हिलजात्रा उत्सव आज, मुखौटा नृत्य पर आधारित यह पर्व बेहद खास

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पिथौरागढ़। उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले की सोर घाटी का प्रसिद्ध हिलजात्रा उत्सव आज कुमौड़ के हिलजात्रा मैदान में होगा। कृषि पर आधारित इस उत्सव को देखने के लिए हर साल हजारों की संख्या में लोग जुटते हैं। इस ऐतिहासिक मैदान में लखिया के अलावा गल्या बैलों की जोड़ी, एकल्वा बैल, हलिया, किसान, पुतारियां बने पात्र प्राचीन परंपरा और संस्कृति को बेहद खूबसूरत ढंग से प्रस्तुत करते हैं।

मुखौटा नृत्य पर आधारित हिलजात्रा बनी सोरघाटी की पहचान
आज से 36 वर्ष पहले सोरघाटी (पिथौरागढ़) के लोक परंपरा की संवाहक हिलजात्रा का दिल्ली दूरदर्शन से प्रसारण हुआ तो इस लोक उत्सव को देशभर में प्रसिद्धि मिली। खास बात यह है कि इस लोकनाट्य परंपरा को बड़े स्तर के सांस्कृतिक आयोजनों में पांच बार पहला स्थान मिल चुका है। मुखौटा नृत्य पर आधारित यह लोकोत्सव सोरघाटी की पहचान बनता जा रहा है।

हिलजात्रा को राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि देने का श्रेय विख्यात रंगकर्मी स्व. मोहन उप्रेती को जाता है। 1983 में दूरदर्शन से जब इस लोक परंपरा का प्रसारण हुआ तो पर्वतीय कलाकार संघ ने दिल्ली में इसका मंचन किया। उस मंचन में अल्मोड़ा के रंगकर्मी स्व. बृजेंद्र लाल शाह और प्रसिद्ध रंगकर्मी पूर्व विधायक स्वर्गीय हीरा सिंह बोरा ने भी पात्र की भूमिका निभाई थी। 1996 में रामनगर में हुए पर्वतीय सांस्कृतिक महोत्सव में हिलजात्रा को पहला स्थान मिला। उसके बाद जमशेदपुर, सूरजकुंड, टिहरी, दिल्ली में हिलजात्रा का मंचन हुआ और हर बार हिलजात्रा को पहला स्थान मिला।

पिथौरागढ़ का नवोदय पर्वतीय कला केंद्र देश के विभिन्न शहरों में 21 बार हिलजात्रा का मंचन कर चुका है। 1999 में दिल्ली में हिलजात्रा का मंचन किया गया। तब कुमौड़ गांव के यशवंत महर, कुंडल महर, जीवन महर और अर्जुन सिंह महर ने पात्रों की जीवंत भूमिका निभाई थी। राज्य आंदोलनकारी गोपू महर कहते हैं कि समय में आए बदलाव के बावजूद हिलजात्रा का वही प्राचीन स्वरूप कायम है।

मुखौटा नृत्य की ऐसी परंपरा कुमाऊं में अन्यत्र देखने को नहीं मिलती
हिलजात्रा लोकनाट्य परंपरा है। कृषि से जुड़े इस उत्सव में एक ओर मध्य हिमालयी क्षेत्र के मुखौटा नृत्य का प्रदर्शन होता है तो दूसरी ओर देश के अन्य हिस्सों में प्रचलित जात्रा परंपरा का भी समावेश है। पहले जब लोगों के पास मनोरंजन के अन्य साधन नहीं थे, तब ऐसे लोकोत्सवों में जन भागीदारी बहुत ज्यादा होती थी। जानकार बताते हैं कि कुमौड़ और पिथौरागढ़ जिले के तमाम गांवों में यह परंपरा दो सौ साल से चली आ रही है।

इन गांवों में होता है हिलजात्रा का आयोजन
सोरघाटी में एक पखवाड़े तक चलने वाला यह लोकोत्सव कुमौड़ के साथ ही भुरमुनी, मेल्टा, बजेटी, खतीगांव, सिलचमू, अगन्या, उड़ई, लोहाकोट, चमाली, जजुराली, गनगड़ा, बास्ते, देवलथल, सिरौली, कनालीछीना, सिनखोला, भैंस्यूड़ी आदि गांवों में मनाया जाता है।

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