कोरोना संकट को अवसर में बदलने का गुरुमंत्र डेल कालनेगी की इस कहानी में है, जरुर पढ़ें -जयराम शुक्ल

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करोना काल में अर्जित कार्बन क्रैडिट की बाजारू कीमत आँके तो वह अकेले करोना से हुए नुकसान की भरपाई करने में समर्थ है। अस्थमा के मरीजों में भारी कमी आ गई। घर में रहने से फैमली-बाँडिंग और मजबूत हुई।

खान-पान संयमित होने से अन्य बीमारियां घट गईं। बीमारी से ज्यादा लोग दुर्घटनाओं में मरते थे..दुर्घटनाएं अपेक्षाकृत कम हो गई। नदियां साफ हो गईं। जंगल हरहराने लगे। वन्यप्राणी सड़कों पर निर्द्वन्द विचरने लगे। हिमालय के दर्शन कुरुक्षेत्र से होने लगा। हवा शुद्ध हो गई, आसमान साफ हो गया। ओजोन होल भर गया।

डेल कारनेगी जीवन प्रबंधन के विश्वविख्यात गुरू माने जाते हैं। उनकी दो पुस्तकें- ‘लोक व्यवहार’ व ‘चिंता छोड़ों सुख से जियो’ सबसे ज्यादा बिकने और पढ़ी जाने वाली पुस्तकों में है। इन पुस्तकों की विशेषता यह कि इनमें न गप्प है’ न लेखकीय परिकल्पना। जो वास्तव में हुआ वही लिखा। कुछेक कहानियां तो ऐसी भी हैं जो मौत के एक सेंकड पहले जीवन दृष्टि बदल देती हैं। आज इन्हीं में से एक कहानी की चर्चा करते हैं।

बड़े बाँध की योजनाएं किसानों को भारी मुसीबत लाने वाली होती हैं। जैसे नर्मदा के इंदिरा सागर बाँध में हरसूद जैसे हँसते-खेलते शहर डूब गए। ऐसे ही दुनियाभर में हजारों शहरों और अरबों हेक्टेयर की काश्त की भूमि जल में समाधिस्थ हो गई। यह कहानी अमेरिका के एक प्रांत फिलाडेल्फिया की है।

बड़े बाँध की योजना में कई किसानों के खेत डूब में आ गए। ज्यादातर ने मुआवजे की राशि से धंधे-रोजगार बदल लिए। एक किसान अड़ियल निकला। उसने सरकार से मुआवजा लेने की जगह डूब की जमीन के एवज में जमीन ही माँग ली। खिसियाए अधिकारियों ने सबक सिखाने की मंशा से उसे छाँटकर बंजर व झाड़ झंखाड़ वाली जमीन दे दी।

सरकार से मिली इस जमीन पर खेती करने किसान पहुंचा। वह उजाड़-बंजर से भी वह निराश नहीं हुआ। किराये के ट्रैक्टर मँगवाए व मजदूरों को जमीन में लगा दिया ताकि उसे खेती लायक बनाया जा सके। शाम होते-होते उसके खेती के मंसूबों पर विषघात हो गया क्योंकि उस पथरीली जमीन में खतरनाक जहरीले साँपों का डेरा था। चार मजदूर साँप के डसे जाने से मर गए।

जमीन अभिशप्त घोषित हो गई। कोई भी मजदूर काम करने को तैयार नहीं। हफ्ते दस दिन तक किसान अपने परिवार के भविष्य को लेकर गुनता-धुनता रहा। सामने अँधेरा था और उसे कुछ सूझ नहीं रहा था। गहरे अवसाद में उसने आत्महत्या करने की ठानी।

दिन ढले शाम को वह गहरी झील के किनारे पहुँचा। मरने से पहले वह अतीत का स्मरण करने लगा। जिंदगी में भूल चूक के लिए अंतरमन से उसने सबसे क्षमा माँगी। वह छँलाग लगाने ही वाला था कि उसके दिमाग में बिजली की तरह एक विचार कौंधा। वह ठिठका और क्षण भर में ही मरने का विचार स्थगित करके लंबे कदमों से घर की ओर लौट पड़ा।

दूसरे दिन सुबह होते ही वह मदारियों की बस्ती पहुंचा जो साँपों को पकड़ने का काम करते थे। उसने वहां आठ-दस लोगों से बात की। सभी मेहनताने की शर्त पर तैयार हो गए। बंजर जमीन के बिलों से साँपों के पकड़ने का काम शुरू हुआ। पहले ही दिन कोई पचास-साठ साँप पकड़कर एक छिद्रित पेटी में कैद कर दिए गए। सभी श्रमिकों को मेहनताना देने के बाद उसने ऐलान किया- इन साँपों का जहर निकालने पर वह दोगुना मेहनताना देगा। सँपेरे बिष निकालने को तैय्यार हो गए।

दूसरे दिन किसान ने अखबारों में विज्ञापन दिया कि उसके पास कोबरा, करैत जैसे बीस अत्यंत जहरीली प्रजाति के साँपों के विष हैं। शामतक उसके घर विष के खरीदारों की लाइन लग गई। विष की कीमत दिए गए मेहनताने से एक हजार गुनी ज्यादा थी। अमेरिका की बड़ी मेडिकल लैब्स के प्रतिनिधियों ने उससे विष उपलब्ध कराने का मँहगा अनुबंध कर लिया। साँप के जहर से एंटीवीनोम व कैंसर जैसी असाध्य बीमारियों की दवाएं बनती हैं।

जहाँ वह जिस जमीन से ऊबकर मरने जा रहा था वहीं उसी जमीन के कारण उसे इतने डालर का अनुबंध मिल गया जिसकी रकम जमीन की कीमत से ज्यादा थी।

उसने साँपों की फार्मिंग प्रारंभ कर दी। साँपों के विष का व्यवसाय फलने-फूलने लगा। देखते ही देखते वह बंजर जमीन स्नेक पार्क में बदल गई। किसान फिलाडेल्फिया के अमीरों की श्रेणी में आ गया। उसका स्नेक पार्क अमेरिका की वाइल्ड लाइफ टूरिज्म का बड़ा ठिकाना बन गया। वह किसान कुछ वर्षों बाद न्यूयार्क में रहने लगा तथा अपने स्नेक पार्क जाने के लिए अपने प्रायवेट जेट का इस्तेमाल करता।

सबक- साँप से न निपट सको तो उसके जहर को निकालकर दवा बनाना सीख लो।

अवसाद को प्रफुल्लता में, निराशा को आशा में बदलने का यह श्रेष्ठ उदाहरण है। उसने बताया कि संकट को कैसे अवसर में बदला जा सकता है। इस करोना काल में बहुत से ऐसे हैं जो अवसाद की ओर प्रस्थित हैं।

इस करोना में आप देखेंगे तो कई उत्साहजनक कथाएं सामने आ जाएंगी। मेरे एक मित्र बता रहे थे..कि फलाँ साहब अपने लड़के की नशाखोरी में परेशान थे। देश के हर बड़े अस्पतालों में, नशामुक्ति केंद्रों में बेटे को दिखाया। करोना उनके लिए राहत लेकर आया..लड़के के दिमाग से नशे का असर कम होने लगा। कुछेक दिन बेचैनी में रहा फिर अब सँभल रहा है।

लाखों रुपयों के खर्च का जो असर नहीं दिखा वह करोना ने कर दिखाया..। न जाने ऐसे कितनी बड़ी संख्या में लोग होंगे जिनका नशा बिलकुल ही बंद हो गया। शराब, गाँजा, स्मैक, हेरोइन व अन्य नशीली दवाओं के अनुपलब्धता ने बिना नशे का रहने का आदी बना दिया।

खान-पान संयमित होने से अन्य बीमारियां घट गईं। बीमारी से ज्यादा लोग दुर्घटनाओं में मरते थे..दुर्घटनाएं अपेक्षाकृत कम हो गई। नदियां साफ हो गईं। जंगल हरहराने लगे। वन्यप्राणी सड़कों पर निर्द्वन्द विचरने लगे। हिमालय के दर्शन कुरुक्षेत्र से होने लगा। हवा शुद्ध हो गई, आसमान साफ हो गया। ओजोन होल भर गया।

करोना काल में अर्जित कार्बन क्रैडिट की बाजारू कीमत आँके तो वह अकेले करोना से हुए नुकसान की भरपाई करने में समर्थ है। अस्थमा के मरीजों में भारी कमी आ गई। घर में रहने से फैमली-बाँडिंग और मजबूत हुई।

और सबसे बड़ी बात यह कि इस करोना काल में करोड़ों जीवधारियों के प्राण बच गए जिन्हें अबतक कटकर पेट में हजम हो जाना था…! क्या उनके मूक आशीषों का कोई मूल्य आँक सकते हैं..नहीं न..! सो करोना के कृष्णपक्ष में रहते हुए इसके शुक्लपक्ष के बारे में आज से ही सोचना शुरू कर दीजिए।

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