जयललिता उपहार मामला; सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने से किया इनकार

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जयललिता ( फाईल फोटो)
दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जे. जयललिता और दो अन्य के खिलाफ बगैर हिसाब के दो करोड़ रुपये से अधिक के उपहार लेने का मामला निरस्त करने संबंधी मद्रास उच्च न्यायालय के 2011 के आदेश में हस्तक्षेप करने से मंगलवार को इनकार कर दिया।

न्यायमूर्ति आर. भानुमति और न्यायमूर्ति ए. एस. बोपन्ना की पीठ ने कहा है कि इस मामले में तीन में से दो आरोपियों की मृत्यु हो चुकी हैं और उच्च न्यायलाय ने यह मामला दायर करने में हुए विलंब का उल्लेख अपने आदेश में किया था। ऐसी स्थिति में 2011 के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई औचित्य नहीं है। केन्द्रीय जांच ब्यूरो ने दो करोड़ रुपये से अधिक मूल्य के उपहार लेने से संबंधित इस मामले में तीन व्यक्तियों को आरोपी बनाया था।

इनमें से पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता और पूर्व मंत्री अजागु थिरूनावुक्कारासु की मृत्यु हो चुकी है और तीसरे आरोपी के. ए. सेनगोत्तायन इस समय तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक सरकार में स्कूल शिक्षा मंत्री है। शीर्ष अदालत ने 2012 में इस मामले में जयललिता और अन्य को सीबीआई की याचिका पर नोटिस जारी किए थे।

जांच ब्यूरो ने उच्च न्यायालय के 2011 के आदेश को शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी। सीबीआई ने तर्क दिया कि, यह अपराध 1992 में हुआ था, यह केवल 1996 में आयकर विभाग के संज्ञान में आया और कार्रवाई के लिए तमिलनाडु के मुख्य सचिव को विधिवत् सूचित किया गया। इसमें किसी भी प्रकार की देरी नहीं हुई। यह दावा किया गया कि उच्च न्यायालय को यह देखना चाहिए कि एफआईआर में आरोप के अनुसार, विस्तृत जांच यूएस. , यूके और यूएई में की जानी थी और इस प्रक्रिया ने जांच को अंतिम रूप देने में काफी समय लगाया।

जांच ब्यूरो ने अपनी अपील में कहा था कि उच्च न्यायालय ने इस मामले के विभिन्न पहलुओं पर कानून के अनुरूप विचार नहीं किया है। एजेंसी का यह मामला जयललिता के सन् 1991 से संबंधित है जिसमें उन्हें 2 करोड़ से अधिक के उपहार मिले थे।

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