ठुमरी क्वीन से विख्यात गिरिजा देवी शून्य में विलीन

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देहरादून। संवाददाता। ठुमरी क्वीनश के नाम से मशहूर भारतीय शास्त्रीय गायिका गिरिजा देवी का बिहार से गहरा नाता था। उन्होंने गायन की शुरुआत ऑल इंडिया रेडियो इलाहाबाद से की थी मगर पहली बार मंच से सार्वजनिक प्रस्तुति बिहार में दी थी जिसके लिए उन्हें अपने घरवालों के विरोध का सामना करना पड़ा था।

गिरिजा देवी ने खुद ही एक साक्षात्कार में बताया था कि उनका जन्म एक जमींदार परिवार में हुआ था और पिता संगीत के शौकीन थे और संगीत सीखने के लिए गांव से बनारस आते थे। वो भी जब छोटी सी थीं तो पिता के साथ ही बनारस आती थीं।

एक दिन पिता के गुरुजी को गाते हुए सुना तो उस छोटी सी उम्र में उनकी आंखों से झर-झर आंसू बह रहे थे, जिसे देखकर पिता के गुरु ने कहा था-तेरी बेटी एक दिन बहुत बड़ी गायिका बनेगी, तेरा नाम रौशन करेगी।

उसके बाद पांच-छह साल की छोटी सी गिरिजा का संगीत के प्रति रूझान को देखकर पिता ने उनकी संगीत की शिक्षा शुरू करवा दी। उनके पिता को शौक था कि वो गायिका बनें। गिरिजा देवी ने एक इंटरव्यू के दौरान बताया था कि उस वक्त सार्वजनिक मंच पर किसी उच्च वर्ग की महिला के गाना गाने को बुरा समझा जाता था। लेकिन परिजनों के विरोध के बावजूद गिरिजा देवी ने पटना में पहली बार सार्वजनिक मंच से गाना गाया था।

संगीतभूषण व पद्म विभूषण से सम्मानित गिरिजा देवी की शिष्या व मशहूर ठुमरी व कजरी गायिका डॉ. शालिनी वेद उन्हें साक्षात सरस्वती का रूप बतातीं हैं। गिरिजा के साथ अपनी यादों को साझा करते हुए डॉ. शालिनी कहती हैं कि मेरा और गिरिजा जी का साथ बहुत भावनात्मक था।

वह जब भी कानपुर आती थीं तो मेरे घर पर ही रहती थीं। उनका शिष्यों से व्यवहार मां की तरह था। वे केवल गीत-संगीत ही नहीं जीवन जीने का तरीका भी बताती थीं। ठुमरी तो बहुत लोग गाते थे पर उन्होंने इसमें नयापन लाया और इस विधा को लोकप्रिय बनाया। डॉ. वेद ने कहा कि हमने एक बेहतरीन कलाकार ही नहीं हर दिल पर राज करने वाला इंसान खोया है। उनकी कमी कभी पूरी नहीं की जा सकती।

 

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