काउंसिलिंग से पहले फीस तय न होने से छात्र दुविधा में

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देहरादून। संवाददाता। मेडिकल काॅलेजों में फीस को लेकर संशय बना हुआ है। निजी मेडिकल कॉलेजों में स्टेट कोटे की फीस काउंसिलिंग से पहले तय न होने से अब छात्र दुविधा में हैं। यदि स्टेट कोटे की सीटों के लिए फीस बढ़ती है तो छात्रों को बढ़ी फीस देनी होगी और यदि फीस ज्यादा बढ़ी और छात्र उसे देने की स्थिति में नहीं हुए तो उन्हें दाखिला छोड़ना होगा।

राज्य में हिमालयन इंस्टीट्यूट और एसजीआरआर मेडिकल कॉलेज में स्टेट कोटे की कुल 150 सीटें हैं। प्रथम राउंड की काउंसिलिंग में जब छात्रों को ये सीटें आवंटित हुईं तो दोनों कॉलेजों ने सरकार के साथ फीस तय न होने की बात कहकर दाखिले से मना किया।

जिस पर कुछ छात्र हाईकोर्ट गए। हाईकोर्ट के दखल के बाद दाखिले मिल गए। जबकि, इस बीच फीस निर्धारण की प्रक्रिया अभी चल ही रही है। दाखिला लेने वाले छात्रों से शपथपत्र लिया गया कि यदि दाखिला लेने के बाद फीस बढ़ती है तो उन्हें मान्य होगी।

अभी फीस साढ़े चार लाख रुपये प्रतिवर्ष है। अनुमान है कि फीस 12 लाख रुपये तक बढ़ सकती है। ऐसे में, चार साल में छात्र को स्टेट कोटे की सरकारी सीट के लिए ही 62 लाख रुपये तक चुकाने पड़ सकते हैं। कोई अभिभावक इतनी फीस चुकाने में सक्षम न हो और दाखिला छोड़ता है, तो उसे शपथपत्र के नियमों के तहत एक साल की फीस चुकाकर राहत मिलेगी।

अभिभावकों का कहना है कि दाखिले के बाद फीस बढ़ाने का कोई औचित्य नहीं है। ऐसा हुआ तो इससे उन्हें दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। सरकार को फीस काउंसलिंग से पहले निर्धारित करनी चाहिए थी। अब यदि सरकार ऐसा नहीं कर पाई तो यह उनकी विफलता है। अब फीस निर्धारण समिति की आठ सितंबर को होने वाली बैठक में तमाम पहलू पर विचार किया जाए।

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