दिवाली में आनन्द उठा सकेंगे मंडुवे की बर्फी का; स्वादिष्ट ही नहीं औषधीय गुण से भी होगी भरपूर

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  • दीपावली तक इसे बाजार में लाने की तैयारी है 
  • औषधीय गुणों से भरपूर इस जैविक बर्फी की कीमत 400 रुपये प्रति किलो होगी
  • अब तक फोन पर दो सौ किलो बर्फी का आर्डर मिल चुका है

नई टिहरी :  पहाड़ी अनाज मंडुवे (कोदा) की रोटी खाई हो या न खाई हो, लेकिन जल्द ही आप मंडुवा की बर्फी का लुत्फ भी ले सकेंगे। कृषि विज्ञान केंद्र रानीचौरी (टिहरी) से मंडुवे की बर्फी बनाने का प्रशिक्षण लेकर शिक्षित बेरोजगार संदीप सकलानी और कुलदीप रावत दीपावली तक इसे बाजार में लाने की तैयारी कर रहे हैं।

औषधीय गुणों से भरपूर इस जैविक बर्फी की कीमत 400 रुपये प्रति किलो होगी। अब तक उन्हें फोन पर दो सौ किलो बर्फी का आर्डर मिल चुका है।  मंडुवे (वैज्ञानिक नाम इल्यूसीन कोराकाना) को कुछ साल पूर्व तक गरीबों का आहार कहा जाता था। लेकिन, आज इसी मंडुवे के लोग दीवाने हो रहे हैं।

पुराने जमाने में मंडुवे को केवल रोटी व बाड़ी (सादा हलुवा) के रूप में ही खाया जाता था। लेकिन मंडुवे की पौष्टिकता को देखते हुए कुछ वर्षों से रोटी के अलावा बिस्कुट और माल्ट के रूप में भी इसका उपयोग हो रहा है। अब इससे भी आगे मंडुवा बर्फी के रूप में भी बिकने को तैयार है। बता दें कि कुछ समय से औद्यानिकी एवं वानिकी महाविद्यालय रानीचौरी का कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) पारंपरिक अनाजों पर शोध कर रहा है और उनके नए-नए उत्पाद बनाने को प्रयोग भी किए जा रहे हैं। केंद्र के वैज्ञानिकों ने सबसे पहले मंडुवा की बर्फी बनाने का प्रयोग किया, जो सफल रहा।

इसके बाद ग्रामीणों को बर्फी बनाने का प्रशिक्षण दिया गया। इसके लिए एक माह पूर्व प्रशिक्षण कार्यशाला आयोजित की गई। इसमें नई टिहरी के युवा संदीप सकलानी और चंबा के कुलदीप रावत ने भी प्रशिक्षण लिया। अब उन्होंने मंडुवे की बर्फी को बाजार में लाने का निर्णय लिया है। प्रायोगिक तौर पर कुछ दिन पूर्व उन्होंने दस किलो बर्फी बनाकर उसे अपने परिचितों व अन्य लोगों को खिलाया।

लोगों को बर्फी का स्वाद तो भाया ही, उसकी गुणवत्ता की उन्होंने जमकर तारीफ की। संदीप व कुलदीप ने इसे सोशल मीडिया पर पोस्ट किया तो बर्फी की डिमांड आने लगी। उन्होंने बताया कि अब तक विभिन्न स्थानों से दो सौ किलो बर्फी की डिमांड आ चुकी है। दीपावली से पहले उन्हें बर्फी उपलब्ध करा दी जाएगी।

मिठाई के साथ औषधि भी है मंडुवा की बर्फी 

शुद्ध देशी घी में इस बर्फी को ड्राई फ्रुट के साथ तैयार किया गया है। बर्फी में मिठास के लिए शक्कर मिलाई गई। यह पूरी तरह जैविक है। मंडुवा में वैसे भी कई तरह के पोषक तत्व पाए जाते हैं, उस पर ड्राई फ्रुट के कारण इसकी गुणवत्ता और बढ़ गई है। यह एकदम अलग तरह की मिठाई होगी, जो औषधीय गुणों से भी भरपूर होगी।

ऐसे हुई बर्फी बनाने की शुरुआत

26 वर्षीय संदीप सकलानी ने बीटेक करने के बाद दो साल अकाउंट इंजीनियर के रूप में राजस्थान में नौकरी की। लेकिन, वहां मन न रमने के कारण वह घर लौट आया और कुछ हटकर करने का निर्णय लिया। इसी दौरान 25 वर्षीय कुलदीप रावत से उसकी दोस्ती हो गई, जो स्नातक की पढ़ाई कर रहा था। दोनों के विचार मिले तो दो वर्ष पूर्व ‘देवकौश’ नाम से एक कंपनी का गठन किया।

इसके माध्यम से उन्होंने फलों व सब्जियों पर आधारित उत्पाद बनाने शुरू किए। इसी दौरान उन्हें पता चला कि केवीके रानीचौरी उत्पाद बनाने का प्रशिक्षण दे रहा है तो उन्होंने भी इसमें भाग लिया और वहां मंडुवा की बर्फी बनानी सीखी।

किसानों की आर्थिकी सुधारना उद्देश्य 

कृषि विज्ञान केंद्र रानीचौरी के मुख्य प्रशिक्षक कीर्ति कुमार के मुताबिक हमारा ध्येय पारंपरिक अनाजों को बढ़ावा देकर किसानों की आर्थिकी सुधारना है। इसीलिए मंडुवा, झंगोरा आदि मोटे अनाज के कई उत्पाद तैयार किए जा रहे हैं। मंडुवा की बर्फी इसी का हिस्सा है। संदीप व कुलदीप ने इसे बनाया और अब व्यापार के रूप में आगे बढ़ाना चाहते हैं। यही तो हम चाहते हैं।   (रघुभाई जड़धारी दैनिक जागरण में) 

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