बागनाथ मंदिर में क्यों कैद हैं?आठवीं से लेकर दसवीं सदी तक की मूर्तियां; इनकी पूजा-अर्चना तक नहीं होती

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1996 में पुरातत्व विभाग ने मंदिर को अपने कब्जे में लिया। इसके बाद आठवीं से लेकर दसवीं सदी के शिलालेख भी लोहे की जाली में बंद कर दिए गए। इन शिलालेखों में शिव, गणेश, विष्णु, चर्तुमुखी शिव, तीन मुखी शिव, पंच मुखी शिव, मेहशासुर मर्दनी, सहस्त्र शिवलिंग, गणेश, कार्तिकेय, पंचदेवपठ, नवग्रह आदि की मूर्तियों विराजमान हैं। 17 सालों से इन मूर्तियों की पूजा अर्चना भी नहीं हो रही है।

बागेश्वर (संवाददाता) : पुरातत्व विभाग ने आठवीं से लेकर दसवीं सदी की मूर्तियों को यहां बागनाथ मंदिर में कैद कर रखा है। लोहे की जाली के अंदर तमाम देवताओं की मूर्तियां हैं। इनकी पूजा-अर्चना तक नहीं हो रही है। इतना ही नहीं पर्यटक भी इन शिलालेखों के दर्शन ठीक से नहीं कर पा रहे हैं। बागनाथ मंदिर के पुजारी रावल परिवार है। ये लोग शिवलिंग तथा अन्य मूर्तियों की रक्षा के साथ ही पूजा-अर्चना भी करते आए हैं। 1996 में पुरातत्व विभाग ने मंदिर को अपने कब्जे में लिया। इसके बाद आठवीं से लेकर दसवीं सदी के शिलालेख भी लोहे की जाली में बंद कर दिए गए। इन शिलालेखों में शिव, गणेश, विष्णु, चर्तुमुखी शिव, तीन मुखी शिव, पंच मुखी शिव, मेहशासुर मर्दनी, सहस्त्र शिवलिंग, गणेश, कार्तिकेय, पंचदेवपठ, नवग्रह आदि की मूर्तियों विराजमान हैं। 17 सालों से इन मूर्तियों की पूजा अर्चना भी नहीं हो रही है।

मंदिर के प्रधान पूजारी नंदी रावल कहते हैं कि पुरातत्व विभाग उनकी नहीं सुनता। शिलालेखों को पूजा-अर्चना के लिए खोलने की मांग की गई, लेकिन उनकी एक नहीं चली। उन्होंने कहा कि मंदिर आदि का सौंदर्यीकरण करने के लिए भी पुरातत्व विभाग से अनुमति लेनी होती है। सैलानी अनिल विश्वास, मिनाक्षी शर्मा, प्रमोद कुमार तथा किरन देव कहते हैं कि बागनाथ मंदिर के बारे में किताबों में पढ़ा, लेकिन शिलालेख के दर्शन स्पष्ट नहीं हो पा रहे हैं। पंडित हेम चंद्र जोशी ने कहा कि मूर्तियों में प्राण प्रतिष्ठा के बाद उनकी पूजा-अर्चना करना जरूरी होता है। पुरातत्व विभाग इसे नहीं मानता।

पर्यटकों के लिए खुलेगी जाली पुरातत्व विभाग अल्मोड़ा के सहायक अन्वेषण डा. जीएस चौहान ने कहा कि विभाग ने एक व्यक्ति की नियुक्ति बागनाथ मंदिर में की है। उन्हें जाली खोलने को कहा गया है।

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