तो इस वजह से हो रही उत्तराखण्ड में बाघों की मौत

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देहरादून। संवाददाता। बाघ संरक्षण के लिहाज से देशभर में कर्नाटक के बाद उत्तराखंड भले ही दूसरे नंबर पर हो, लेकिन इस साल एक के बाद एक लगातार हो रही बाघों की मौत ने वन महकमे की पेशानी पर बल डाल दिए हैं। विभागीय आंकड़े टटोलें तो पिछले 11 महीनों में 12 बाघों की मौत हुई, जबकि अनाधिकृत आंकड़े यह संख्या 14 बताते हैं। इनमें सर्वाधिक नौ मौतें कार्बेट टाइगर रिजर्व में हुईं।

ऐसे में सवाल उठने लगा है कि जिस हिसाब से बाघों की संख्या बढ़ी है, क्या उस लिहाज से जंगल में उनके लिए भोजन की भी व्यवस्था है। कहीं खाद्य शृंखला (फूड चेन) में तो कोई गड़बड़ नहीं। हालांकि, विभागीय अधिकारी बाघों की मौत को प्राकृतिक मान रहे हैं, लेकिन चिंताएं अपनी जगह हैं।

यह किसी से छिपा नहीं है कि बाघ संरक्षण की दिशा में उत्तराखंड ने बेहतर प्रयास किए हैं। खासकर कार्बेट टाइगर रिजर्व व राजाजी टाइगर रिजर्व के साथ इनके बाहरी क्षेत्रों में भी। दोनों टाइगर रिजर्व के मध्य स्थित लैंसडौन वन प्रभाग बाघों के नए घर के रूप में उभरा है।

इन प्रयासों की दुनियाभर में प्रशंसा भी हुई है। बाघों को बचाने की परवान चढ़ी मुहिम का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि राज्य में बाघों की संख्या 362 पहुंच चुकी है। बावजूद इसके तस्वीर का दूसरा पहलू भी है और वह है बाघों की लगातार हो रही मौत।

राज्य गठन से अब तक के वक्फे को देखें तो ये चैथा मौका है, जब सालभर में बाघों की मृत्यु का आंकड़ा दहाई का अंक पार कर गया। इनमें भी सबसे अधिक बाघ उस कार्बेट टाइगर रिजर्व में मरे, जो बाघ घनत्व के लिहाज से देशभर में अव्वल है।

हालांकि, बाघों की मौत के पीछे प्राकृतिक मौत के साथ ही आपसी संघर्ष, हादसे जैसे कारण गिनाए जा रहे हैं, मगर यह सवाल अब भी अनुत्तरित है कि इस वर्ष ऐसा क्या हो गया कि एक के बाद एक बाघ मर रहे हैं। शक्तिशाली ही करेगा राजवन्यजीव विशेषज्ञ डी. चंद की मानें तो राज्य ने बाघ तो बढ़ा लिए हैं, लेकिन यह भी देखा जाना चाहिए कि उनके लिए जंगल मे उस हिसाब से भोजन का इंतजाम है या नहीं। फिर जंगल का सिद्धांत भी है कि जो शक्तिशाली होगा, वही इलाके पर राज करेगा। कमजोर को या तो जान गंवानी पड़ेगी अथवा क्षेत्र बदलना होगा। कार्बेट में बाघों की मौत के मामले में भी ऐसा संभव है। इस बिंदु पर गहनता से विचार किया जाना चाहिए।

गहनता से होगी पड़ताल

वन एवं पर्यावरण मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत के मुताबिक बाघों की लगातार हो रही मौत चिंता का कारण है। स्वाभाविक मौत अथवा प्राकृतिक मौत तो कोई बात नहीं, लेकिन कहीं कोई बीमारी अथवा कोई दूसरे कारण तो नहीं। इसे देखते हुए अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि वे गहनता से इसकी पड़ताल करा लें।

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