उत्तराखंड में अब दिव्यांग पेंशन घोटाला; 236 दिव्यांगों को दी जा रही थी दो-दो पेंशन

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  • उत्तराखंड समाज कल्याण विभाग में सामने आया एक और घोटाला
  • 236 लोगों को जारी की जा रही थी दो-दो दिव्यांग पेंशन
  • फर्जीवाड़ा सामने आया तो जांच के आदेश

देहरादून(संवाददाता):  करोड़ों की छात्रवृति घोटाले के बाद उत्तराखंड का समाज कल्याण विभाग अब एक बार फिर से सवालों के घेरे में है. आयुक्त नि:शक्तजन मनोज चंद्रन के निर्देश पर बैठी जांच में राज्य में 236 लोगों को फर्जी तरीके से दो-दो दिव्यांग पेंशन भेजे जाने का खुलासा हुआ है. इसके साथ ही आयुक्त ने संदिग्ध पाए गए 1927 लोगों की दोबारा जांच करने के भी निर्देश दिए हैं. आशंका जताई जा रही कि इनमें से भी कई लोगों को विभाग दो-दो दिव्यांग पेंशन जारी कर रहा था.

आयुक्त नि:शक्तजन ने एक माह पूर्व विभाग के पोर्टल की जांच में 1927 लोग ऐसे पाए थे, जिनके नाम दो-दो बार दर्ज थे और विभाग की ओर से उन्हें दो-दो दिव्यांग पेंशन भी भेजी जा रही थी. आयुक्त ने इस संबंध में निदेशक समाज कल्याण, जिला समाज कल्याण अधिकारी व आइटी सेल के प्रभारी को मामले की जांच कर वस्तुस्थिति से अवगत कराने के निर्देश दिए थे. अब जिला समाज कल्याण अधिकारी ने जांच रिपोर्ट अपर सचिव/आयुक्त नि:शक्तजन मनोज चंद्रन को सौंप दी है, जिसमें स्वीकार किया गया है कि इनमें से 236 लोगों को दो-दो दिव्यांग पेंशन भेजी जा रही हैं.

आयुक्त नि:शक्तजन के अनुसार विभाग ने 236 लोगों की डुप्लीकेसी होने की बात तो स्वीकारी है, लेकिन शेष पेन्शनर डुप्लीकेट हैं या नहीं, इस पर स्थिति स्पष्ट नहीं की है. साथ ही यह ब्यौरा भी उपलब्ध नहीं कराया गया है कि फर्जी तरीके से दिव्यांग पेंशन आवंटन के लिए जिम्मेदार जिला समाज कल्याण अधिकारी कौन हैं. आयुक्त ने इस संबंध में भी जानकारी तलब की है। साथ ही शेष पेन्शनरों की दोबारा जांच कर चार सितंबर तक रिपोर्ट देने के निर्देश दिए हैं.

निदेशक की जांच में मिले मात्र 153 डुप्लीकेट

जिला समाज कल्याण विभाग ने जहां 236 लोगों को फर्जी ढंग से दिव्यांग पेंशन देने की बात स्वीकारी है, वहीं निदेशक वीएस धनिक की ओर से भेजी गई जांच रिपोर्ट में मात्र 153 डुप्लीकेट पेंशन उपभोक्ता बताए गए है. इस मामले में जांच के लिए अतिरिक्त समय दिया गया है.

टकार लगाई आयुक्त ने

जांच रिपोर्ट में डुप्लीकेसी सामने आने के बाद आयुक्त ने संबंधित व्यक्तियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने के निर्देश दिए हैं. जबकि, विभाग ने नियमावली में मुकदमा दर्ज करने का प्राविधान होने से इनकार किया है. इस पर आयुक्त ने नि:शक्त व्यक्तियों का अधिकार अधिनियम-2016 की धारा 91 का हवाला देते हुए फटकार लगाई है.

 

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