गढ़भोज को बढ़ावा देने के लिए सरकार करे सहयोग-सेमवाल

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देहरादून। संवाददाता। उत्तराखण्ड के परम्परागत भोजन गढ़भोज को व्यापक पहचान दिलाने के लिए हम सरकार से अपेक्षा रखते है कि वह राज्य में मिड डे मील, सरकारी कैंटीन, हास्पिटल, हास्टल सहित अन्य स्थानों पर सप्ताह में एक दिन अनिवार्य रूप से गढभोज को परोसे जाने की व्यवस्था करे। अन्य राज्यों के भोजन अपनी अलग पहचान बनाये हुए है जबकि उत्तराखण्ड का गढ़भोज स्वास्थ्य वर्धक होने के बावजूद अपनी पहचान अब तक नहीं बना पाया है।

यह बात आज प्रैस क्लब में आयोजित पत्रकार वार्ता के दौरान हिमालय पर्यावरण जड़ी बूटी एग्रो संस्थान ट्टजाड़ी’ के द्वारिका प्रसाद सेमवाल ने कही। उन्होने कहा कि देश के हर राज्य की अपनी संस्कृति व खान पान की एक विशेष पहचान है। जबकि उत्तराखण्ड भी विशिष्ट संस्कृति व खान पान वाला राज्य है। लेकिन हमारे राज्य के खान पान को अब तक वह पहचान नहीं मिल पायी है जो अन्य राज्यों के भोजन की पहचान है। उन्होने बताया कि यात्राकाल के दौरान जब देश विदेश के लोग यहां पहुंचते है तो उन्हे यहां का भोजन उपलब्ध नहीं हो पाता है। कहा कि हमारे यहां का भोजन देश में अलग पहचान बना सकते है।

इस दिशा मे कई लोग अपने स्तर पर व्यक्तिगत प्रयास भी कर रहे है लेकिन आवश्यकता अब सरकारी प्रयासों की है ताकि वृहद स्तर पर अपने राज्य के भोज्य पदार्थो को पहचान दिलायी जा सके। साथ ही इससे पहाड़ी क्षेत्रों के किसानों को बेहतर आजीविका भी मिल सके। उन्होने कहा कि हमारी संस्था ने 2008 से परम्परागत भोजन को पहचान दिलाने के लिए कार्य शुरू किया था जिसके तहत गढ़वाल व कुमांऊ क्षेत्रों में स्थानीय भोजन व उनके प्रकारों पर चर्चा की गयी।

जिसमें सर्वप्रथम भोजन के नाम को लेकर सर्वसम्मति से परम्परागत भोजन को गढ़भोज का नाम दिया गया है। इस क्रम में अगला कदम उत्तरकाशी जनपद मुख्यालय में सरकारी बैठकों, प्रशिक्षण कार्यक्रमों, मेले प्रदर्शनियों व शादी समारोह में गढ़भोज को परोसने का काम किया गया। उन्होने कहा कि अब सरकार को भी इस सम्बन्ध में उचित कदम उठाने चाहिए। ताकि गढ़भोज को व्यापक स्तर पर पहचान मिल सके। उन्होने सुझाव के रूप में बताया कि गढ़भोज को मिड डे मील, सरकार कैंटीन, हास्पिटल, हास्टल सहित अन्य जगहों पर सप्ताह में एक दिन अनिवार्य रूप से परोसे जाने की व्यवस्था की जाये।

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