हिमालय को इंसानी गतिविधियों से भारी नुकसान पहुंचा है-वन मंत्री हरक सिंह रावत

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देहरादून (संवाददाता) :  दून विश्विद्यालय में हिमालयी पर्यावरण, विकास और संस्कृति पर चल रहे तीन दिन के अंतरराष्ट्रीय सेमिनार के समापन में वन मंत्री हरक सिंह रावत ने कहा कि पूरी दुनिया में पर्यावरण संरक्षण के प्रति संवेदनशीलता बढ़ी है। इंसानी गतिविधियों से हिमालय के पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचा है।

उन्होंने कहा कि बदलते पर्यावरण के प्रभाव को महसूस करने के लिए पर्यावरण वैज्ञानिक होने की जरूरत नहीं है। हर आदमी उसे महसूस कर सकता है। उन्होंने बताया कि एक जमाने में पहाड़ों में कई सारे पानी के स्रेत होते थे जो आज सूख गये हैं। रावत ने पहाड़ों से पलायन कर चुके लोगों का आह्वान किया कि वे अपने खेतों में फलदार वृक्ष लगाएं।

तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सेमिनार तीन दिन के भीतर देश-विदेश से आये शोधकर्ताओं ने ग्यारह तकनीकी सत्रों में ढाई सौ से भी ज्यादा शोध पत्र प्रस्तुत किये। जल्द ही सेमिनार में पढ़े गए शोध पत्रों को किताब की शक्ल में प्रकाशित किया जाएगा। 

हिमालयी क्षेत्रों में बड़े बांधों का निर्माण नहीं होना चाहिए। इससे पर्यावरण को भारी नुकसान होगा। प्राकृतिक संपदा को दोहन के लिए निजी हाथों में नहीं सौंपा जाना चाहिए। चीन सहित सार्क देशों को हिमालय से निकलने वाली नदियों को बचाने के लिए सामूहिक प्रयास करने चाहिए। यह बातें नेपाल के जाने-माने पर्यावरणविद् और त्रिभुवन विविद्यालय के प्रोफेसर गोपाल शिवाकोटी चिंतन ने दून विविद्यालय में आयोजित तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सेमीनार के आखिरी दिन कहीं।

उन्होंने याद दिलाया कि चीन नदियों के साझे इस्तेमाल को लेकर किसी भी तरह के समझौते से बचता रहा है। जबकि हिमालय और हिमालय की नदियां सभी देशों की सामूहिक संपत्ति हैं। सेमिनार के दूसरे दिन दो तकनीकी सत्र आयोजित किए गए। पहला सत्र शासन और सार्वजनिक नीति एवं दूसरा सत्र मीडिया एवं साहित्य विषय पर आयोजित किया गया। कार्यक्रम में दून विविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर कुसुम अरूणाचलम, श्रीदेव सुमन विविद्यालय के कुलपति डा. यू़एस रावत, गढ़वाल विविद्यालय के पूर्व कुलपति डा. एसपी सिंह, डा. बीपी डोभाल, रिटार्यड पीसीसीएफ डा. आरबीएस रावत, डा. बीपी मैठाणी, डा. वरूण जोशी, डा. किरण शर्मा, शिवांशु नेगी, तान्या रावत, दीपशिखा सजवाण, आलोक नैथानी, मुकेश देवराड़ी आदि मौजूद रहे।

हिमालयी क्षेत्र की कृषि में बदलाव की जरूरत : अरुणाचलम 

सेमिनार के अंतिम दिन के पहले सत्र में कृषि वैज्ञानिक डा. ए. अरूणाचलम ने कहा कि खेती को परंपरागत पेशे के बजाय लाभकारी पेशे में तब्दील किए जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि किसानों की स्थिति मजदूरों से भी बदतर होती जा रही है। हिमालयी क्षेत्रों में कृषि में भारी बदलाव करने की जरूरत है।

उन्होंने कहा कि खेती को आर्थिक रूप से प्रासंगिक बनाए रखने के लिए सरकार को बड़े स्तर पर प्रयास करने होंगे। किसानों को नई तकनीकें, बीज, अच्छी नस्ल के पशु और अच्छी ट्रेनिंग के साथ ही बड़े स्तर पर भरोसे वाला सिस्टम दिये जाने की जरूरत है।

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