खुद ईश्वर को समर्पित हो जाना ही वास्तविक भक्ति

0
272


देहरादून। डीएल रोड स्थित श्री चैत्नय गौडिय मठ में चल रहे हरिनाम संकीर्तन सम्मेलन में आज विष्य नवदा भक्ति जिसका अर्थ है खुश करने की प्रक्रिया, भगवान को खुश करने की जो क्रिया है, उसे भक्ति कहते हैं। गौड़ीय मठ में इसकी सरल परिभाषा बताते हुए महाराज स्वामी मुनि ने बताया कि जिस क्रिया का फल भगवान को जाता हैं उसे भक्ति कहते हैं। इस मौके पर मुख्य अतिथि के तौर पर विधानसभा स्पीकर प्रेमचंद अग्रवाल मौजूद रहे।

स्वामी मुनि ने बताया कि नौ प्रकार से ईश्वर की भक्ति हो सकती है। भगवान के बारे में श्रवण करना, कीर्तन करना, स्मरण करना, पाद सेवन, अर्चना करना, दास्य की सेवा करना साथ ही खुद को भगवान में समर्पित करना। हरीनाम जहाज है, चढ़े सो उस पार। अर्थात जो ईश्वरीय जहाज पर सवार हो जाता है वह दूसरे पार लग जाता है। अन्यथा मनुष्य सांसरिक झमेलों से पार नहीं पा सकता है। हरी नाम केवलम ही प्रधान माना गया है। भक्ति का नौवां अंग है, मैं भगवान का अंश हूं। यदि कोई व्यक्ति अमेरिका में हैं, मगर उसकी भावना है कि मैं देहरादून का हूं, जब आपकी भावना ईश्वर को समर्पित होती हैं, तो ईश्वर से आप सीधा जुड़ जाते हैं।

 

इस मौके पर विधानसभा स्पीकर प्रेमचंद अग्रवाल ने कहा कि संसार में इतनी समस्या होने के बाद भी सब व्यवस्थित चल रहा है। जो ईश्वरीय कृपा के बाद ही संभव हो पाया है। ईश्वर में संलिप्त व्यक्ति किसी गलत रास्ते पर नहीं जा सकता है। यदि गलत विचार उत्पन्न होता है तो ईश्वर उसे सही राह दिखा देते हैं।

इस मौके पर भक्ति विचार विष्णु महाराज, विमुद मुनि महाराज, प्रमुख भिक्क्षुक महाराज, विलास त्रिंदडी महाराज, त्रिदंडी स्वामी भक्ति सुंदर भारती महाराज, मठ रक्षक भक्ति प्रसन्न त्यागी महाराज, दिनेश शर्मा सहित कई भक्त मौजूद रहे।

LEAVE A REPLY