20 साल में 1.5 डिग्री बढ़ जाएगा तापमान,समय से कदम उठाने की जरूरत

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बढ़ते मानवीय हस्तक्षेप और ग्रीन हाउस गैसों की अधिकता के कारण हिमालय खतरे में है। इंटर नेशनल प्लांट प्रोटेक्शन एंड कनवेंशन (आईपीपीसी) की रिपोर्ट के अनुसार यदि तापमान बढ़ने का सिलसिला यूं ही जारी रहा तो अगले 20 वर्षों में धरती के तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि की संभावना है। यह कहीं न कहीं हिमालय और उसके मुख्य घटकों को भी प्रभावित करेगा।

जैव प्रौद्योगिकी परिषद हल्दी के वैज्ञानिक डॉ. मणिंद्र मोहन ने विशेष बातचीत में कहा कि डाउन टू अर्थ में प्रकाशित आंकड़े बताते हैं कि हिंदुकुश हिमालय क्षेत्र जो भारत, नेपाल, चीन सहित आठ देशों के लगभग साढ़े तीन हजार वर्ग किलोमीटर में फैला है, इस पर दुनिया की लगभग एक तिहाई आबादी पानी के लिए निर्भर है। तापमान वृद्धि के कारण हिमालय के हिमनदों के तेजी से पिघलने और जलस्रोतों के सूखने से पेयजल संकट गहरा गया है। इससे पहाड़ों से पलायन बढ़ा।

उत्तराखंड पलायन आयोग के अनुसार, पिछले दस साल के दौरान अधिकतर पलायन पौड़ी और अल्मोड़ा जिले से हुआ है। वहीं, वन विभाग के आंकड़ों के अनुसार राज्य गठन के बाद से उत्तराखंड में जंगलों की आग से 44554 हेक्टेयर से अधिक जंगल क्षतिग्रस्त हुए हैं जिससे वातावरण में ग्रीन हाउस गैसों की वृद्धि की संभावना बढ़ी है।ग्रीन हाउस गैसों के बढ़ने से हिमालय के हिमनदों, जल स्रोतों, जैव विविधता और पारिस्थितिकी के साथ कृषि उत्पादन प्रभावित हुआ है। ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन से ग्लोबल वार्मिंग सहित वातावरण के तापमान में तेजी से वृद्धि हो रही है। इसके चलते हिमालय का पारिस्थितिकी तंत्र  और परितंत्र असंतुलित हो रहा है।

ग्लेशियर पिघलकर सिकुड़ रहे हैं और छोटे स्रोत सूखकर अपना आस्तित्व खो रहे हैं। इससे पर्वतीय क्षेत्रों में सिंचाई और पेयजल की किल्लत बढ़ी है। ग्लोबल वार्मिंग से हिमालय की वनस्पतियां, जीव जंतु अपना अनुकूलन स्थापित नहीं कर पा रहे हैं, इससे उनके प्रजनन और संख्या में कमी आ रही है। जल स्रोतों के सूखने से जैव विविधता का भी हृस हो रहा है।

आंकड़ों के मुताबिक 20 प्रतिशत ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन पेड़ों के कटान, 14 प्रतिशत यातायात तथा 11 प्रतिशत के लिए अन्य कारक जिम्मेदार हैं। कुल मिलाकर वातावरण को बिगाड़ने में ग्रीन हाउस गैसों का 45 प्रतिशत हाथ है जो सीधे तौर पर हिमालय व उसके घटकों को प्रभावित कर रहे हैं। ग्रीन हाउस गैसों का मुख्य घटक कार्बन डाई ऑक्साइड है।

आंकड़े बताते हैं कि भारत में 70 प्रतिशत बिजली का उत्पादन कोयले से होता है, जो कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन का प्रमुख कारक है। ऐसे में तापमान और जलवायु परिवर्तन के मुख्य कारक ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन और प्रभाव को कम करके हिमालय और उसके घटकों को बचाया जाना बेहद जरूरी है, जो जनसहयोग की भावना से ही संभव हो सकता है।

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