लीक से हटकर काम करने वालों को दिया पुरस्कार

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छोटे शहरों में गुमनाम रहकर समाज के लिए जीने वाले कई चेहरों को पद्म सम्मान (Padma Awards) से नवाजने की परंपरा मोदी सरकार ने इस बार भी जारी रखी।

पुरस्कार के लिए जिन नामों का चयन हुआ है उसमें कई ऐसे चेहरे हैं, जिनका काम देखकर कोई भी कह उठेगा अरे वाह! अद्भुत।

मगर अब तक ये गुमनाम चेहरे किसी पुरस्कार की चमक धमक से दूर रहे हैं।

 

चाय बेचकर झुग्गी के बच्चों को पढ़ाया 

ओडिशा के चाय बेचने वाले गुरु देवरापल्ली प्रकाश राव ने चाय अपनी आधी कमाई स्कूल चलाने में खर्च कर दी। वह झुग्गी के बच्चों के लिए स्कूल चलाते हैं। सात साल की उम्र से काम कर रहे राव पक्षाघात से पीड़ित होने के बावजूद भी अद्भुत जज्बे के धनी हैं।उन्होंने 1978 से करीब दो सौ बार रक्तदान किया और सात बार प्लेटलेट्स दान किए।

गरीबों के डॉक्टर

‘गरीबों के डॉक्टर’ के रूप में पहचान हासिल करने वाले झारखंड के डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी 84 साल की उम्र में भी हर रोज करीब 40 मरीजों को महज पांच रुपये फीस पर देखते हैं। वह जरुरतमंद लोगों को मुफ्त दवा उपलब्ध कराते हैं।

बंदूक की जगह ढोल की थाप

छत्तीसगढ़ के अनूप रंजन पाण्डेय को बस्तर का मसीहा कहा जाता है। उन्होंने नक्सली हिंसा के शिकार बस्तर इलाके में संगीत के माध्यम से प्यार, शांति और भाईचारे की अलख जगाई है। बस्तर बैंड थिएटर के जरिए उन्होंने स्थानीय आदिवासी कलाकारों को जोड़ा है। करीब 110 दुर्लभ पारंपरिक छत्तीसगढ़ उपकरणों को एकत्र करके उन्होंने संगीत के जरिए आदिवासी बेल्ट में नारा दिया ‘बंदूक छोड़ो, ढोल पकड़ो।’

श्लोक से भाईचारा बढ़ा रहे खान 

दिल्ली के संस्कृत विद्वान और लेखक मोहम्मद हानिफ खान शास्त्री को हिंदू मुस्लिम भाईचारे और एकता की मिसाल कायम करने के लिए पद्म पुरुस्कारों की सूची में जगह मिली। हानिफ खान ने प्राचीन भारतीय श्लोकों पर आधारित किताबों और कविताओं के माध्यम से हिंदू मुस्लिम भाईचारे को बढ़ावा दिया।

सौ साल की योग शिक्षिका

उम्र को मात देकर योग के प्रति समर्पित 100 साल की योग शिक्षिका योगिनी ताओ पोरचों लिंच उम्र के इस पड़ाव में भी योग के प्रति अद्भुत समर्पण दिखाकर अपने चुस्त दुरुस्त दिमाग और शरीर से लोगों के लिए प्रेरणा बनी हैं। उन्होंने अमेरिका में योग टीचर एसोशिएशन का गठन किया। वह दुनिया की सबसे बुजुर्ग योग शिक्षिका हैं।

किसान चाची नाम से पहचान

किसान चाची के नाम से मशहूर बिहार की राजकुमारी देवी को स्वयं सहायता समूह के जरिए खेती के प्रति महिलाओं को जागरूक करने और उन्हें वित्तीय रूप से आत्मनिर्भर बनाने के लिए सम्मान से नवाजा गया। उन्होंने अब तक सैकड़ों महिलाओं को प्रशिक्षण देकर पैरों पर खड़ा किया।

पहाड़ पर 50 साल से सर्जरी

लद्दाख के अद्भुत सर्जन के रूप में पहचान कायम करने वाले शेरिंग नोरबू पिछले 50 सालों से लद्दाख के दुरुह व सुदूरवर्ती इलाकों में मरीजों का इलाज कर रहे हैं। वे हर साल 500 सर्जरी करते हैं और यह सिलसिला पिछले पांच दशक से चला आ रहा है।

घर गृहस्थी के काम की मशीन

घर गृहस्थी में काम आने वाली छोटी-छोटी मशीनों के निर्माण के सूत्रधार जमीनी वैज्ञानिक उद्धब कुमार भाराली पिछले तीस सालों से कम लागत वाली, लोगों के काम आने वाले इनोवेशन पर काम कर रहे है। भारली ने अब तक करीब 118 इनावेशन किए हैं। इनमें अनार के बीज निकालने वाली मशीन, लहसुन छीलने वाली मशीन और पॉलीथीन बनाने वाली मशीनें शामिल हैं।

बीमार गायों की सहारा 

पिछले 23 वर्ष से गोशाला में करीब 1200 गायों की देखभाल कर रही जर्मनी की फ्रेडिक इरिना, सुदेवी माता जी ने बीमार गायों को मथुरा की अपनी गोशाला में शरण दी। इन्हें बीमार गायों की मां भी कहा जाता है।

उत्तराखंड से तीन लोगों को सम्मान 

उत्तराखंड में जिन तीन लोगों को सम्मान से नवाजा गया है। उनमें बछेन्द्री पाल के अलावा दो चेहरे प्रीतम भरथ्वान और अनूप शाह गुमनाम चेहरों में शामिल रहे हैं। नैनीताल के अनूप शाह पर्यावरण की फोटाग्राफी करते हैं। जबकि अनुसूचित जाति के प्रीतम ने पहाड़ की जागर प्रथा को जीवित रखने में अपना योगदान दिया है। पहली बार राज्य से तीन लोगों को पुरस्कार मिला है। उत्तर प्रदेश से दस और बिहार से पांच लोगों को सम्मान मिला है।

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