तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और सांसद मुकुल रॉय ने राज्य सभा सदस्यता और पार्टी से दिया इस्तीफ़ा

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  • मुकुल रॉय का यह फैसला पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए तगड़ा झटका
  • ममता बनर्जी के बाद मुकुल रॉय पार्टी के सबसे बड़े चेहरे थे
  • तृणमूल कांग्रेस ने मुकुल रॉय को छह साल के लिए पार्टी से निलंबित किया 
  • पार्टी ने कहा कि रॉय बीजेपी के साथ मिले हुए हैं

कोलकत्ता (एजेंसीज) :  तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और सांसद मुकुल रॉय ने पार्टी और राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया है। मुकुल रॉय का यह फैसला पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए तगड़ा झटका माना जा रहा है। उधर, मुकुल रॉय की इस घोषणा के बाद तृणमूल कांग्रेस ने उन्हें छह साल के लिए पार्टी से निलंबित कर दिया। पार्टी ने कहा कि रॉय बीजेपी के साथ मिले हुए हैं। रॉय ने संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि दुर्गापूजा के बाद इस बात का खुलासा करेंगे, वह क्यों इस्तीफा दे रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘मैं बहुत दु:खी मन से घोषणा कर रहा हूं कि मैं पार्टी की प्राथमिक सदस्यता और राज्यसभा सदस्यता से इस्तीफा दे दूंगा। मैं इस्तीफे की औपचारिक घोषणा दुर्गापूजा के बाद करूंगा।’

ममता बनर्जी के बाद मुकुल रॉय पार्टी के सबसे बड़े चेहरे थे लेकिन पिछले कुछ समय से दोनों नेताओं के संबंध ठीक नहीं चल रहे थे। पिछले दिनों तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मुकुल रॉय के पर कतर दिए थे। मुकुल रॉय को पार्ल्यामेंट की स्टैंडिंग कमिटी के अध्यक्ष (ट्रांसपॉर्ट व टूरिजम) पद से हटा दिया गया था। उनकी जगह राज्यसभा सांसद डेरेक ओ ब्रायन यह जिम्मेदारी दी गई थी। मुकुल रॉय को पहले ही राज्यसभा में टीएमसी के नेता पद से हटा दिया जा चुका है।

दिलचस्प बात यह है कि कुछ साल पहले तक मुकुल रॉय को ममता बनर्जी का बेहद करीबी और विश्वासपात्र माना जाता था। सियासी हलकों में चर्चा है कि मुकुल रॉय की बीजेपी नेताओं से नजदीकियां बढ़ रही हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, मुकुल रॉय बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से भी मिल चुके हैं।

ऐसे में इसकी संभावना है कि पश्चिम बंगाल में मजबूती से पैर पसारने में जुटी बीजेपी में मुकुल रॉय शामिल हो सकते हैं। बहुचर्चित नारद स्टिंग ऑपरेशन में टीएमसी सांसद केडी सिंह के नाम आने पर पार्ल्यामेंट की स्टैंडिंग कमिटी के अध्यक्ष (ट्रांसपॉर्ट व टूरिजम) की पद की जिम्मेदारी मुकुल रॉय को सौंपी गई थी। इसके बाद से सियासी रूप से मुकुल रॉय लगातार कमजोर हो रहे थे।

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