लोकसभा में विपक्ष का नेता नियुक्त करने की मांग पर सुनवाई से अदालत ने किया इनकार

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delhi high court
दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को लोकसभा अध्यक्ष को सदन में विपक्ष का नेता नियुक्त करने का निर्देश देने की मांग संबंधी एक याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया। मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की पीठ ने कहा कि उसे ‘इस याचिका पर सुनवाई करने का कोई कारण नजर नहीं आता’ क्योंकि ऐसा कोई कानून नहीं है जो विपक्ष के नेता की नियुक्ति का निर्धारण करता है।

अदालत ने कहा कि विपक्ष का नेता नियुक्त करने की कोई सांविधिक जरूरत नहीं है, अतएव उसे ऐसी नियुक्ति के लिए कोई नीति बनाने का निर्देश देने का कोई कारण नजर नहीं आता। पीठ ने यह भी कहा कि ऐसी ही एक याचिका 2014 में बिना कोई राहत प्रदान किए निस्तारित कर दी गई थी।

इन टिप्पणियों के साथ अदालत ने वकीलों- मनमोहन सिंह नरूला और सुष्मिता कुमारी द्वारा दायर की गई जनहित याचिका खारिज कर दी। इन वकीलों ने आरोप लगाया था कि लोकसभा अध्यक्ष विपक्ष का नेता नियुक्त करने के अपने सांविधिक कर्तव्य का निर्वहन नहीं कर रहे हैं।

याचिकाकर्ताओं ने याचिका में दावा किया कि सदन के किसी सदस्य को विपक्ष के नेता के रूप में मान्यता देना ‘कोई राजनीतिक या अंकगणितीय निर्णय नहीं, बल्कि सांविधिक निर्णय है। उन्होंने कहा, ‘(लोकसभा) अध्यक्ष को बस यह देखना होता है कि जो दल इस पद का दावा कर रहे हैं, वह विपक्ष में सबसे बड़ा दल है या नहीं।’

याचिकाकर्ताओं ने विपक्ष के नेता पद की नियुक्ति के लिए एक नीति गठित करने की भी मांग की। उन्होंने कहा कि संसद में दूसरे सबसे बड़े दल कांग्रेस को विपक्ष के नेता पद से वंचित करना गलत परंपरा है और इससे लोकतंत्र कमजोर होता है। पश्चिम बंगाल के बहरामपुर के सांसद अधीर रंजन चैधरी लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता चुने गए हैं।

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