अयोध्या विवादः सुप्रीम कोर्ट में 19वें दिन सुनवाई जारी, मुस्लिम पक्ष पेश कर रहा है दलीलें

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दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में 19वें दिन अयोध्या मामले की सुनवाई जारी है। हिंदू पक्ष की दलीले खत्म होने के बाद अब मुस्लिम पक्ष अपने दावे रख रहा है। इस दौरान मामले के मुस्लिम पैरोकार इकबाल अंसारी पर हमले का भी मामला कोर्ट में उठा।

बता दें कि चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय संवैधानिक पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है। इस संवैधानिक पीठ में जस्टिस एस ए बोबडे, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस ए नजीर भी शामिल हैं। पूरा विवाद 2.77 एकड़ की जमीन को लेकर है।

18वें दिन की सुनवाई में यह हुआ…
उच्चतम न्यायालय में चल रही अयोध्या मामले की सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्षकारों ने मंगलवार को दावा कि 22-23 दिसंबर की दरम्यानी रात अयोध्या में बाबरी मस्जिद के अंदर मूर्तियां रखने के लिए सुनियोजित और ‘नजर बचा के हमला’ किया गया था। इसमें कुछ अधिकारियों की हिंदुओं के साथ मिलीभगत थी और उन्होंने प्रतिमाओं को हटाने से इनकार कर दिया।

प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में 18वें दिन सुनवाई की। इस दौरान मुस्लिम पक्ष का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने पीठ को बताया कि फैजाबाद के तत्कालीन उपायुक्त के के नायर ने स्पष्ट निर्देश के बावजूद मूर्तियों को हटाने की इजाजत नहीं दी।

मस्जिद में प्रतिमा का प्रकट होना चमत्कार नहीं था: धवन
धवन ने पीठ को बताया, ‘बाबरी के अंदर देवी-देवताओं की प्रतिमा का प्रकट होना चमत्कार नहीं था। 22-23 दिसंबर 1949 की दरम्यानी रात उन्हें रखने के लिये सुनियोजित तरीके से और गुपचुप हमला किया गया।’ पीठ में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, डी वाई चंद्रचूड़, अशोक भूषण और एसए नजीर भी शामिल हैं।

सुन्नी वक्फ बोर्ड और मूल वादियों में से एक एम सिद्दीक का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील ने दावा किया कि उन्हें ‘अंदर की कहानी’ पता थी और कहा कि नायर ने बाद में भारतीय जन संघ के उम्मीदवार के तौर पर लोकसभा चुनाव लड़ा था।

धवन ने कहा कि नायर ने 16 दिसंबर 1949 में राज्य के मुख्य सचिव को पत्र लिखकर कहा था कि बाबर द्वारा 1528 में ध्वस्त किए जाने से पहले वहां विक्रमादित्य द्वारा बनाया गया एक भव्य मंदिर था। उन्होंने कहा, ‘यह श्रीमान नायर का योगदान था।’

उन्होंने हिंदू पक्षकारों द्वारा पेश की गईं विवादित स्थल के अंदरूनी हिस्सों की तस्वीरों का हवाला देते हुए आरोप लगाया कि नायर समेत सरकारी अधिारियों ने स्थल पर यथास्थिति बनाए रखने के आदेश का उल्लंघन तस्वीरें खींचे जाने की इजाजत देकर किया। अंदर प्रतिमाएं रखे जाने के बाद पांच जनवरी 1950 को इस संपत्ति को कुर्क कर दिया गया था। पीठ ने टिप्पणी की, ‘इनका (तस्वीरों का) मामले पर कोई प्रभाव नहीं है।’

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