थारू जनजाति की महिलाओं का हुनर : बरसाती घास से कलात्मक बस्तुएं बना संवार रहीं तकदीर

0
1948

  • ये उत्पाद बनते हैं जंगली घास से-पेपर वेट, पैन स्टैंड, कोस्टर, बैंगल बाक्स, ज्वैलरी बाक्स, फूल व फल की टोकरी, ड्राई फ्रूट ट्रे, रोटी रखने के लिए हॉटकेस, पर्स बास्केट, गुलदस्ता, फ्लावर पॉट आदि कई उत्पाद हाथ से बुनकर तैयार किए जाते हैं।
  • महिला केवल छह से सात घंटे इस काम में समय दे दे तो वह आठ से दस हजार रुपए की महीने की आमदनी कर सकती हैं।
  • काम तेजी से चल रहा है। समूह की मुखिया ने बताया कि बड़े मेलों पर उनकी डिमांड बढ़ जाती है। पर्यटन सीजन में खूब आर्डर मिलते हैं। दिल्ली-मुबंई के आर्डर आ चुके हैं।

खटीमा (उधम सिंह नगर) : कोरोना काल में बेरोजगारी के संकट से उबरने के लिए लोग स्वरोजगार अपना आत्मनिर्भर बनने की दिशा में बढ़ रहे हैं। उत्तराखंड के ऊधमसिंहनगर जिले में भी थारू जनजाति की महिलाओं ने इसी दिशा में कदम बढ़़ाए हैं। वे अपने हुनर से रोजगार के अवसर बुन रही हैं। जंगली मूंज आदि घास से जरूरत की कलात्मक चीजें बना आत्मनिर्भर की ओर बढ़ रही हैं।

खटीमा के थारू जनजाति देवरी गांव की शिक्षा राणा ने समूह बनाकर महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की शुरूआत की है। थारू समाज के पुश्तैनी हुनर को एक दिशा दे दी हैं। बहुत कम संख्या में पाए जाने वाले इन लोगों का जीवन यापन का जरिया बहुत सामान्य है। पुरुष खेती बाड़ी करते हैं। तो महिलाओं ने भी आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाए हैं।

हुनरमंद हाथों से जंगली घास बन जाती है कलात्मक चीज

मूंज, कास, सीख व पलगा घासें सिर्फ बारिश के दिनों में पाई जाती हैं। यह नदी-नालों के किनारे बंजर भूमि पर स्वत: ही उग आती हैं। हुनरमंद हाथों में पहुँच ये जंगली घास कलात्मक चीजों में बदल जाती है। थारू समाज की महिलाएं इन घासों को काटकर स्टोर कर लेती हैं। फिर साल भर जीवन यापन करने का आधार बनाती हैं। इन्ही घासों से वह विभिन्न प्रकार के उत्पादों का निर्माण करती हैं।

सौ से अधिक महिलाएं हैं आत्मनिर्भरता की राह पर

मंगल महिला स्वयं सहायता समूह की अध्यक्ष शिक्षा राणा बताती हैं कि 2004 से पारंपरिक हुनर को बाजार में पहचान और जगह मिली गई थी। धीरे-धीरे समूह के जरिए सौ से अधिक महिलाएं आत्मनिर्भर बन चुकी हैं। फुलैया, गुरखुड़ा, उल्धन, बिरिया, मझौला, सैजना भुडिया गांव में समूह की महिलाएं काम कर रही हैं।

आमदनी बड़ी तो कारंवा भी बढ़ा

शिक्षा राणा कहती है कि महिला केवल छह से सात घंटे इस काम में समय दे दे तो वह आठ से दस हजार रुपए की महीने की आमदनी कर सकती हैं। उनके साथ मंजू देवी, लक्ष्मी, कमला, कांति, सीता, इमला देवी, परवीनवती, मानवी, उमेशवती सरस्वती आदि महिलाएं काम पर जुटी हुई हैं।

दिल्ली से मुंबई तक है डिमांड

मंगल महिला समूह को लॉक डाउन से पहले मेगा प्रोजेक्ट ने आर्डर दिया है। जिसका काम तेजी से चल रहा है। समूह की मुखिया ने बताया कि बड़े मेलों पर उनकी डिमांड बढ़ जाती है। पर्यटन सीजन में खूब आर्डर मिलते हैं। दिल्ली-मुबंई के आर्डर आ चुके हैं।

ये उत्पाद बनते हैं जंगली घास से

पेपर वेट, पैन स्टैंड, कोस्टर, बैंगल बाक्स, ज्वैलरी बाक्स, फूल व फल की टोकरी, ड्राई फ्रूट ट्रे, रोटी रखने के लिए हॉटकेस, पर्स बास्केट, गुलदस्ता, फ्लावर पॉट आदि कई उत्पाद हाथ से बुनकर तैयार किए जाते हैं।

LEAVE A REPLY