इन मुस्लिम शख्श को है संस्कृत भाषा का संपूर्ण ज्ञान; संस्कृत के प्रति समर्पण के लिए मिली चतुर्वेदी की उपाधि

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  • ज्ञान और कर्मठता के सामने मजहब की दीवार भी बौनी हो जाती है
  • हयात उल्ला चतुर्वेदी यहां के कौशांबी जिला के रहने वाले हैं
  • चतुर्वेदी की उपाधि उनको दशकों पहले सम्मान में दी गई
  • हयात उल्ला चतुर्वेदी का भी मानना है, भाषा का ज्ञान मजहब की दीवार को गिरा देता है
इलाहाबाद(एजेंसीज): यहां आज भी ऐसे विरले लोग मौजूद है जिसके ज्ञान और कर्मठता के सामने मजहब की दीवार भी बौनी हो जाती है। जन्म से मुस्लिम यह सख्सियत हयात उल्ला हैं , जिनका पूरा नाम हयात उल्ला चतुर्वेदी है। इनके लिए मजहब से कहीं ज्यादा देश की एकता और अखंडता के लिए समर्पित होना मायने रखता है। पेशे से अध्यापक इस सख्सियत को संस्कृत भाषा का संपूर्ण ज्ञान है। जिसके कारण इनको चतुर्वेदी की उपाधि मिली है। 72 साल की उम्र में भी ज्ञान बांटने का ऐसा जज्बा बच्चों को ही नहीं इनके साथी अध्यापको को भी प्रेरणा देता है।
संस्कृत की विद्वता पर 1967 में मिली चतुर्वेदी की उपाधि
– हयात उल्ला चतुर्वेदी यहां के कौशांबी जिला के रहने वाले हैं। काम से रिटायर हो चुके हैं, लेकिन पढ़ाने का मोह नहीं छूटा। विषय भी ऐसा कि लोग पसीना छोड़ देते हैं, लेकिन यही विषय उनकी पहचान बना और आज वह देश के कोने-कोने में जाने जाते हैं।
– चतुर्वेदी की उपाधि उनको दशकों पहले सम्मान में दी गई, लेकिन नहीं मिला तो राष्ट्रपति पुरस्कार लेकिन इसका उन्हें कोई मलाल नहीं है।
– जब बात पुरस्कार की होती है तो बरबस हयात उल्ला चतुर्वेदी का नाम बुद्धिजीवियों की जुबान पर आ जाता है। धर्म से मुस्लिम होने के बाद भी हयात उल्ला साहब की लगन ने संस्कृत भाषा का विद्वान बना दिया ।
– हयात उल्ला चतुर्वेदी का मानना है कि भाषा का ज्ञान मजहब की दीवार को गिरा देता है, जो आज के समय की बुनियादी जरूरत है। बच्चों के बीच ज्ञान बांटने का ऐसा जज्बा है कि उम्र की लाचारी की आड़े नहीं आती ।
– चारों वेदों का उन्हें ज्ञान है। घर में भी उनके संस्कृत भाषा से बातचीत होती है। 1967 में उनको एक राष्ट्रीय सम्मेलन में चतुर्वेदी की उपाधि दी गई तो पूरा देश गदगद हो गया।
शेरवानी इंटर कालेज से 14 साल पहले रिटायर्ड है हयात उल्ला
– हयात उल्ला एमआर शेरवानी इंटर कॉलेज में संस्कृत पढ़ाते थे। 2003 में वह रिटायर हुए। इसके बाद भी उन्होंने छात्रों को पढ़ाना नहीं छोड़ा। महगांव इंटर कॉलेज में वह छात्रों को पढ़ाते हैं।
– संस्कृत विषय में उन्होंने कई किताबे लिखी हैं। हाईस्कूल की परिचायिका को भी उन्होंने अनुवादित कर सरल बनाया है। इसके अलावा दिग्दर्शिका छपने वाली है।
अमेरिका , नेपाल, मॉरीशस की कर चुके है यात्रा
– संस्कृत के प्रचार व प्रसार के लिए वह राष्ट्रीय एकता के लिए अमेरिका, नेपाल, मॉरीशस आदि देशों में सेमिनार भी कर चुके हैं।
– छात्र भी उनका बहुत सम्मान करते हैं। हयात उल्ला चतुर्वेदी ने अपने संरक्षण में कई लड़कों को पढ़ाया। आज वह संस्कृत विषय से शिक्षक हैं और अपने गुरू का गुणगान गा रहे हैं।
– बच्चों का कहना है कि उनको गर्व है की वह एक अनोखी धरोहर रुपी अध्यापक से शिक्षा प्राप्त करते है।
बच्चो को पढ़ाने में करते है अलग प्रयोग
– बच्चों के मुताबिक हयात उल्ला चतुर्वेदी का पढ़ने का तरीका दुसरे अध्यापकों से अलग है। वह बच्चों को समझाने के लिए हिंदी, उर्दू और संस्कृत भाषा का जब प्रयोग करते है, तो उन्हें बेहतर समझ में आता है।
– महगांव इंटर कालेज में शिक्षण कार्य करने वाले हयात उल्ला चतुर्वेदी साहब के साथ पढ़ाने वाले उनके सहयोगी अध्यापक भी उनको अपना आदर्श मानते है ।
– अध्यापकों का कहना है, “शुरुआती दिनों में उनको बड़ा आश्चर्य होना था कि मुस्लिम परिवार की सख्सियत कैसे ब्राम्हणों की भाषा का विद्वान हो सकता है , लेकिन अब उनके ज्ञान और जज्बे को देख उन्हें भी प्रेरणा मिलती है साथ ही उनको फक्र है। वह गंगा-यमुनी संस्कृति की एक धरोहर के साथ अध्ययन और अध्यापन कार्य करते है।
– यदि भारत को समझाना है तो उसके गांवो का रुख करना होगा। जहां आप को हयात उल्ला चतुर्वेदी जैसी हजारों सख्सियत आज भी मिलेगी, जो दुनिया में आज भी धर्म और मजहब की कड़वाहट से दूर एक ऐसा नई पीढ़ी तैयार करने में लगे है, जो सही मायने में भारत के भाग्य विधाता बन सके।
– साथ ही ऐसा समाज अपने आप में सजोये बैठे है जिनको आज शिक्षक दिवस पर सारा देश सलाम कर रहा है।”

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