जानिये स्वीर्गीय पंत के फार्मासिस्ट से लेकर वित्त मंत्री बनने तक के सफर के बारे में

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देहरादून। संवाददाता। उत्तराखंड की राजनीति में अहम मुकाम रखने वाले सूबे के वित्त मंत्री प्रकाश पंत हमारे बीच नही है। कैंसर की बीमारी से जूझ रहे पंत ने सात समंदर पार अमेरिका के टैक्सास में अंतिम सांस ली। सूबें की सरकार में अहम भूमिका अदा कर रहे पंत पिछले तीन माह से बीमार चल रहे थे। लेकिन ये किसी ने नहीं सोचा था कि उत्तराखंड के प्रकाश को मौत का घना अंधेरा निगल लेगा।

आज के दौर में जब राजनीति और नैतिकता का दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है। ऐसे में प्रकाश पंत जैसे शालीन, सुलझे और मीठी वाणी के नेता का जाना हर किसी को रूला रहा है। छात्र जीवन से ही सामाजिक सरोकारों से जुड़े पंत ने पिथौरागढ़ महाविद्यालय में सैन्य विज्ञान के सीआर के रूप में अपनी राजनीतिक पारी का आगाज किया। लेकिन फिर उन्होनें स्वास्थ्य विभाग में फार्मासिस्ट बतौरं 1983 से 88 तक अपनी सेवाएं दीं। इसके बाद सक्रिय राजनीति में कूदे पंत कुछ समय तक आईपीएफ से भी जुड़े रहे।

प्रकाश पंत पहली बार 1989 में पिथौरागढ़ नगरपालिका के सभासद चुने गए। सभासद के कार्यकाल में पंत ने अपने मधुर व्यवहार से लोगों के दिलों में खास जगह बनाई। उत्तराखंड में भाजपा को पहचान दिलाने में जिन नेताओं की गिनती होती है। उनमें प्रकाश पंत का नाम भी प्रमुखता से शामिल है। 1998 में प्रकाश पंत यूपी की विधानपरिषद के लिए चुने गए। दो साल तक एमएलसी रहने के बाद में 10 नवम्बर 2000 को अलग उत्तराखंड राज्य अस्तित्व में आ गया। इसके साथ ही पंत उत्तराखंड की राजनीति के आसमान में एक शानदार सितारे की तरह चमकने लगे।

सूबे की अंतरिम विधानसभा में प्रकाश पंत को विधानसभा अध्यक्ष बनने का मौका मिला. पंत के नाम कॉमनवेल्थ देशों में सबसे कम उम्र के स्पीकर होने का रिकॉर्ड भी है. सूबे के पहले विधानसभा चुनाव में पंत पिथौरागढ़ विधानसभा से रिकॉर्ड वोटों से जीते थे. कांग्रेस सरकार में विपक्षी विधायक होने के बावजूद एनडी तिवारी जैसे दिग्गज सीएम ने उन्हें हमेसा सम्मान दिया. साल 2007 में खंडूरी और फिर निशंक सरकार में भी प्रकाश पंत के पास पेयजल, संसदीय, पर्यटन जैसे अहम विभाग रहे. लेकिन साल 2012 के विधानसभा चुनावों में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. साल 2017 के चुनावों में पंत पर पिथौरागढ़ की जनता ने फिर भरोसा जताया।

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