‘अमूल’ की सक्सेज कहानी : भैंस का दूध और डॉ. वर्गीज कुरियन की डेयरी इंजीनियरिंग

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भैंस के दूध से पाउडर बनाने वाले डॉ. वर्गीज कुरियन दुनिया के पहले व्यक्ति थे। 1955 से पहले इसके लिए सिर्फ गाय के दूध का इस्तेमाल किया जाता था।

भैंस का दूध इससे पहले प्रयोग तो होता था लेकिन इसका बड़े स्तर पर बिजनेस नहीं हो पाता था। कारण था भैंस के दूध का पाउडर बनाने की तकनीक का नहीं होना। भैंस के दूध से पाउडर बनाने वाले डॉ. वर्गीज कुरियन दुनिया के पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने इस समस्या का सबसे पहले हल खोजा। 1955 से पहले इसके लिए सिर्फ गाय के दूध का इस्तेमाल किया जाता था।

कैरा डेयरी में अक्टूबर 1955 में भैंस के दूध से पाउडर बनाने का प्लांट लगाया गया। यह AMUL की बहुत बड़ी सफलता थी। सफलता इस मायने में क्योंकि इससे पहले दूध उत्पादकों से जितना दूध लिया जाता था और पाश्चुराइजेशन के बाद जितना बिक पाता था, उसके अलावे बचा हुआ दूध बर्बाद हो जाता था, क्योंकि पाउडर बनाने की तकनीक (भैंस के दूध के लिए) थी ही नहीं। AMUL के लिए रेवेन्यू जेनरेशन में इस एक तकनीक ने गजब का रोल प्ले किया। 1960 आते-आते AMUL की सक्सेस स्टोरी छपने लगी थी। पॉलसन पीछे छूट चुका था।

ऑपरेशन फ्लड से श्वेत क्रांति (दुग्ध क्रांति)

1964 में AMUL ने अत्याधुनिक कैटल फीड प्लांट (जहाँ पशुओं का चारा तैयार किया जाता है) का निर्माण किया। इसके शुभारंभ के लिए तब के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को निमंत्रित किया गया। प्रधानमंत्री कार्यालय ने PM लाल बहादुर शास्त्री का कार्यक्रम सिर्फ एक दिन का तय किया था। उन्हें दिन में प्लांट का शुभारंभ कर शाम में दिल्ली लौट जाना था। लेकिन ऐसा हो न सका। कारण खुद PM शास्त्री थे।

कैटल फीड प्लांट का शुभारंभ करने के बाद PM लाल बहादुर शास्त्री ने आनंद में ही रुकने का फैसला किया। उन्होंने घूम-घूम कर न सिर्फ AMUL की कार्यशैली देखी, बल्कि जितने भी कॉपरेटिव सोसायटी थे, लगभग सभी में जा-जा कर, घूम-घूम कर यह समझा कि कैसे AMUL इनसे दूध लेता है, बाजार तक पहुँचाता है और बदले में उस क्षेत्र के दूध उत्पादकों को वित्तीय रूप से मजबूत बना रहा है।

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